क्या बिहार चुनाव में कुचायकोट सीट पर जदयू का दबदबा कायम रहेगा? रोजगार और विकास हैं प्रमुख मुद्दे

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क्या बिहार चुनाव में कुचायकोट सीट पर जदयू का दबदबा कायम रहेगा? रोजगार और विकास हैं प्रमुख मुद्दे

सारांश

बिहार चुनाव में कुचायकोट सीट की राजनीति काफी दिलचस्प है। यहां जदयू का दबदबा है, लेकिन रोजगार और विकास जैसे मुद्दे स्थानीय लोगों के लिए महत्वपूर्ण हैं। क्या ये मुद्दे आगामी चुनाव में उनकी वोटिंग पैटर्न पर प्रभाव डालेंगे? जानें इस सीट की राजनीति के बारे में।

Key Takeaways

  • कुचायकोट विधानसभा क्षेत्र का ऐतिहासिक महत्व है।
  • रोजगार और विकास प्रमुख मुद्दे हैं।
  • जदयू का पिछले चुनावों में दबदबा रहा है।
  • मतदाता की प्राथमिकताएं जातीय समीकरणों पर निर्भर करती हैं।
  • 2024 में कुचायकोट की राजनीतिक दिशा महत्वपूर्ण होगी।

पटना, 12 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में स्थित कुचायकोट विधानसभा सीट गोपालगंज जिले का एक महत्वपूर्ण निर्वाचन क्षेत्र है। यह कुचायकोट और मांझा दो प्रमुख सामुदायिक विकास खंडों के अंतर्गत आता है, जो गोपालगंज लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा हैं।

कुचायकोट की पहचान कृषि प्रधान क्षेत्र के रूप में होती है। यहां के किसान धान, गेहूं और गन्ने जैसी फसलों की खेती करते हैं। गंडक नहर प्रणाली इस क्षेत्र की कृषि के लिए एक जीवनदायिनी स्रोत है। यहां के अधिकांश लोग खेती पर निर्भर हैं, लेकिन रोजगार की तलाश में बड़ी संख्या में लोग पलायन कर चुके हैं। हाल के वर्षों में सड़कों, बिजली और मोबाइल नेटवर्क के विस्तार से गांवों में विकास की रफ्तार तेज हुई है, फिर भी रोजगार की कमी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।

कुचायकोट विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1951 में हुई थी, लेकिन 1976 के परिसीमन के बाद यह सीट हटा दी गई थी। 2008 में फिर से इसे बहाल किया गया। इसके बाद से यहां तीन विधानसभा चुनाव (2010, 2015, 2020) हो चुके हैं।

1952 से 1972 तक के चुनावों में कांग्रेस का दबदबा रहा, जिसने चार बार जीत दर्ज की। लेकिन 2008 के बाद से यह सीट जदयू के पास बनी हुई है। यहां के प्रवासी मजदूर रोजगार और विकास को प्रमुख मुद्दा मानते हैं, जबकि स्थानीय ग्रामीण मतदाता जातीय पहचान के साथ-साथ सड़क, सिंचाई और शिक्षा जैसे मुद्दों पर वोट करते हैं।

कुचायकोट की राजनीति में नगीना राय का नाम महत्वपूर्ण है। उन्होंने 1967 में निर्दलीय, 1969 में जनता पार्टी, और 1972 में कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में तीन बार जीत हासिल की। बाद में वे इंदिरा गांधी की सरकार में मंत्री बने। नगीना राय के बाद, अमरेंद्र कुमार पांडे ने इस क्षेत्र में मजबूत स्थिति बनाई। जदयू के टिकट पर उन्होंने 2010, 2015 और 2020 के चुनाव में जीत हासिल की।

कुचायकोट विधानसभा में ब्राह्मण, यादव और मुस्लिम मतदाता राजनीति की दिशा तय करते हैं। ब्राह्मण समुदाय का वर्चस्व सबसे अधिक है, और दिलचस्प बात यह है कि नगीना राय को छोड़कर अब तक के सभी निर्वाचित विधायक ब्राह्मण समुदाय से रहे हैं। ब्राह्मण मतदाता पारंपरिक रूप से भाजपा समर्थक माने जाते हैं, लेकिन अमरेंद्र कुमार पांडे के नेतृत्व में जदयू ने इस वर्ग में गहरी पैठ बना ली है।

यादव और मुस्लिम मतदाता क्षेत्र में राजद के परंपरागत समर्थन आधार माने जाते हैं, जिससे हर चुनाव में दिलचस्प त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलता है।

2024 के चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, इस क्षेत्र की कुल जनसंख्या 5,64,075 है, जिसमें 2,89,850 पुरुष और 2,74,225 महिलाएं शामिल हैं। कुल मतदाताओं की संख्या 3,31,795 है, जिसमें 1,69,311 पुरुष, 1,62,457 महिलाएं और 27 थर्ड जेंडर मतदाता हैं।

Point of View

लेकिन मतदाता की प्राथमिकताएं अब भी बदलती रहती हैं। यह चुनाव न केवल स्थानीय मुद्दों पर, बल्कि जातीय समीकरणों पर भी निर्भर करेगा।
NationPress
12/10/2025

Frequently Asked Questions

कुचायकोट विधानसभा क्षेत्र में प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
कुचायकोट विधानसभा क्षेत्र में प्रमुख मुद्दे रोजगार, विकास, सड़क, सिंचाई और शिक्षा हैं।
कुचायकोट में किस पार्टी का दबदबा है?
कुचायकोट में जदयू का दबदबा है, जो पिछले तीन चुनावों में विजयी रही है।
कुचायकोट सीट का ऐतिहासिक महत्व क्या है?
कुचायकोट सीट की स्थापना 1951 में हुई थी और यह कई बार परिसीमन से प्रभावित हुई है।
कुचायकोट में मतदाता संरचना क्या है?
कुचायकोट में ब्राह्मण, यादव और मुस्लिम मतदाता प्रमुख हैं, जो राजनीति की दिशा तय करते हैं।
2024 के चुनाव में कुचायकोट की संभावनाएं क्या हैं?
2024 के चुनाव में रोजगार और विकास के मुद्दों पर मतदाता की प्राथमिकताएं महत्वपूर्ण होंगी।