क्या भाजपा की नौटंकी अब नहीं चलेगी? बिहार बंद पूरी तरह असफल : संजय यादव

सारांश
Key Takeaways
- एनडीए का 'बिहार बंद' असफल रहा।
- संजय यादव ने भाजपा पर गंभीर आरोप लगाए।
- बिहार की जनता ने भाजपा का विरोध किया।
- राजनीति में असली मुद्दों की आवश्यकता है।
- जीएसटी और नोटबंदी पर सरकार की नीति कमजोर है।
पटना, 4 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। सत्तारूढ़ गठबंधन एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) द्वारा आयोजित 'बिहार बंद' का प्रदेश में कोई खास प्रभाव नहीं देखा गया। पटना सहित कई शहरों में सुबह से ही एनडीए के कार्यकर्ता सड़कों पर उतरकर विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे। यह बंद कांग्रेस-राजद के मंच से प्रधानमंत्री के खिलाफ दिए गए विवादास्पद बयानों के विरोध में आयोजित किया गया।
इस बीच, राजद सांसद संजय यादव ने कहा कि यह बंद पूरी तरह से असफल रहा और बिहार की जनता ने यह स्पष्ट कर दिया है कि राज्य में भाजपा का कोई अस्तित्व नहीं है।
उन्होंने राष्ट्र प्रेस से विशेष बातचीत में कहा कि भाजपा के नेता भी मर्यादा का पालन नहीं करते। क्या उनके बयान सनातन के मंत्रोच्चार हैं? यदि उनकी पार्टी का कोई सदस्य कुछ कहता है, तो विपक्ष को दोषी ठहराया जाता है। यह दोहरा मापदंड अब नहीं चलेगा।
संजय यादव ने व्यंग्य करते हुए कहा कि राजनीति शास्त्र में अब एक नया पाठ जोड़ देना चाहिए, ‘झूठ, जुमलों और गाली-गलौज की खाद से वोटों की फसल कैसे तैयार की जाती है।’
राजद सांसद ने कहा कि दो दिन पहले सरकारी कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने 90 बार ‘मां’ शब्द का प्रयोग किया। जब बिहार में हिंदू-मुस्लिम, भारत-पाकिस्तान और सिंदूर की राजनीति नहीं चली, तो अब भावनात्मक कार्ड खेला जा रहा है।
उन्होंने आगे कहा कि बिहार में लाखों युवा बेरोजगार हैं, जबकि गुजरात में भाजपा नेताओं की टिप्पणियां सुनाई देती हैं। आपकी सरकार में 65 हजार से ज्यादा हत्याएं हुईं, 6,500 से अधिक कोख सूनी हुईं, हजारों बहनों के सुहाग उजड़े। तब तो आपके आंसू नहीं निकले। जब बेरोजगार सड़कों पर लाठी खाते हैं, तब भी आपको दर्द नहीं होता। बिहार में भाजपा की नौटंकी की राजनीति नहीं चलेगी और यहां केवल असली मुद्दों पर चर्चा होगी, आर्टिफिशियल मुद्दों पर नहीं।
उन्होंने जीएसटी टैक्स स्लैब में बदलाव पर कहा कि इस सरकार की कोई स्थायी नीति नहीं है। नोटबंदी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था को तहस-नहस कर दिया गया। जिस दिन जीएसटी लागू हुआ था, उसी दिन विपक्ष ने सवाल उठाए थे। अब 9 साल बाद उनकी आंखें खुली हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था को चलाना भाजपा के बस की बात नहीं है।