क्या भारत ईरान-इजरायल के बीच शांति चाहता है? सोनिया गांधी केवल वोट बैंक को खुश कर रही हैं: रेखा शर्मा

सारांश
Key Takeaways
- भारत ने हमेशा शांति का समर्थन किया है।
- सोनिया गांधी के संपादकीय पर रेखा शर्मा ने प्रतिक्रिया दी।
- भारत दोनों देशों के बीच शांति चाहता है।
- पाकिस्तान की राजनीति में दोहरे मानदंड हैं।
- प्रधानमंत्री मोदी का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान बढ़ा है।
चंडीगढ़, 22 जून (राष्ट्र प्रेस)। ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते तनाव के संदर्भ में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के संपादकीय पर भाजपा सांसद रेखा शर्मा ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि भारत ने हमेशा ईरान और इजरायल के बीच शांति की कामना की है।
भाजपा सांसद रेखा शर्मा ने रविवार को समाचार एजेंसी राष्ट्र प्रेस से बातचीत में कहा कि भारत हमेशा शांति के पक्ष में खड़ा रहा है और एक शांतिप्रिय देश है। भारत ईरान और इजरायल दोनों का मित्र है और प्रधानमंत्री मोदी का दोनों देशों में सम्मान किया जाता है। भारत दोनों के बीच शांति चाहता है, लेकिन किसी एक का पक्ष नहीं लेता। सोनिया गांधी केवल एक विशेष वोट बैंक को खुश करने के लिए ऐसी बातें कर रही हैं।
उन्होंने कहा कि यह समझने वाली बात है कि अचानक सोनिया गांधी को विदेश नीति में रुचि क्यों आ गई है। जब उनकी सरकार थी तब उन्हें इसकी कोई चिंता नहीं थी। आज प्रधानमंत्री मोदी को दुनियाभर में सम्मानित किया जा रहा है क्योंकि भारत की विदेश नीति बहुत मजबूत है। पीएम मोदी आज भी दोस्ती की बात कर रहे हैं।
गौरतलब है कि सोनिया गांधी ने इजरायल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव पर भारत सरकार से स्पष्ट रुख अपनाने की मांग की है।
पाकिस्तान की ओर से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल पुरस्कार की पहल किए जाने पर भाजपा सांसद रेखा शर्मा ने कहा कि मेरा मानना है कि पाकिस्तान दोहरी राजनीति कर रहा है। उसे यह नहीं पता कि वह किसकी तरफ है - इजराइल के साथ या ईरान के साथ। एक ओर वह गाजा की बात करता है, दूसरी ओर ईरान की। लेकिन वह ईरान पर बमबारी करने वाले देश के प्रमुख को नोबेल शांति पुरस्कार देने की बात कर रहा है।
भाजपा सांसद ने कहा कि पाकिस्तान को पहले खुद से पूछना चाहिए कि वह वास्तव में किस तरफ खड़ा है। उसे अपने गिरेबान में झांकना चाहिए कि क्या वह शांति का मतलब जानता है। जब से पाकिस्तान बना है, वह आतंकवाद के साथ रहा है। वहां स्थायी सरकार नहीं बनी है। कोई लोकतंत्र नहीं है। जब वह नोबेल पुरस्कार की बात करते हैं तो हंसी आती है। पाकिस्तान को खुद शांति पर भरोसा नहीं है, उसकी बात कौन सुनेगा। इसलिए, पाकिस्तान को पहले अपने घर में झांकना चाहिए।