क्या कैबिनेट ने 25,060 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ निर्यात संवर्धन मिशन को मंजूरी दी?
सारांश
Key Takeaways
- निर्यात संवर्धन मिशन (ईपीएम) का बजट 25,060 करोड़ रुपए है।
- यह एमएसएमई और श्रम-प्रधान क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है।
- मिशन में ब्याज अनुदान, फैक्टरिंग, और क्रेडिट कार्ड जैसी सुविधाएं शामिल हैं।
- ईपीएम का कार्यान्वयन डीजीएफटी द्वारा किया जाएगा।
- यह भारत के निर्यात ढांचे को और अधिक प्रौद्योगिकी-सक्षम बनाएगा।
नई दिल्ली, 12 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धा को सुदृढ़ करने के लिए केंद्रीय बजट 2025-26 में घोषित एक महत्वपूर्ण पहल, निर्यात संवर्धन मिशन (ईपीएम), को हरी झंडी दी। इस मिशन में विशेष रूप से एमएसएमई, पहली बार निर्यात करने वाले और श्रम-प्रधान सेक्टरों को शामिल किया गया है।
यह मिशन वित्त वर्ष 2025-26 से वित्त वर्ष 2030-31 तक 25,060 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ निर्यात संवर्धन के लिए एक व्यापक, लचीला और डिजिटल रूप से संचालित ढांचा प्रदान करेगा। ईपीएम, कई खंडित योजनाओं को एक एकल, परिणाम-आधारित और अनुकूलनीय तंत्र में समाहित करके वैश्विक व्यापार चुनौतियों और निर्यातकों की उभरती आवश्यकताओं का त्वरित उत्तर देने का प्रतीक है।
यह मिशन सहयोगात्मक ढांचे पर आधारित है, जिसमें वाणिज्य विभाग, एमएसएमई मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और वित्तीय संस्थान, निर्यात संवर्धन परिषदें, वस्तु बोर्ड, उद्योग संघ और राज्य सरकारें शामिल हैं।
ईपीएम दो एकीकृत उप-योजनाओं, निर्यात प्रोत्साहन और निर्यात दिशा, के माध्यम से कार्यान्वित होगा। निर्यात प्रोत्साहन के तहत, ब्याज अनुदान, निर्यात लेनदारी लेखा क्रय (फैक्टरिंग), संपार्श्विक गारंटी, ई-कॉमर्स निर्यातकों के लिए क्रेडिट कार्ड और नए बाजारों में विविधीकरण के लिए ऋण सहायता जैसे कई साधनों के माध्यम से एमएसएमई के लिए किफायती व्यापार वित्त पहुंच में सुधार पर केंद्रित है।
वहीं, निर्यात दिशा गैर-वित्तीय सक्षमताओं पर ध्यान केंद्रित करती है। इसमें निर्यात गुणवत्ता और अनुपालन सहायता, अंतर्राष्ट्रीय ब्रांडिंग, पैकेजिंग सहायता, व्यापार मेलों में भागीदारी, निर्यात भंडारण और लॉजिस्टिक्स, अंतर्देशीय परिवहन प्रतिपूर्ति और व्यापार खुफिया तथा क्षमता निर्माण पहलें शामिल हैं।
ईपीएम प्रमुख निर्यात सहायता योजनाओं जैसे ब्याज समकरण योजना (आईईएस) और बाजार पहुंच पहल (एमएआई) को समेकित करता है और इन्हें समकालीन व्यापार आवश्यकताओं के साथ जोड़ता है।
यह मिशन उन संरचनात्मक चुनौतियों का समाधान करने के लिए तैयार किया गया है जो भारतीय निर्यात को बाधित करती हैं, जैसे सीमित और महंगी व्यापार वित्त पहुंच, अंतर्राष्ट्रीय निर्यात मानकों का अनुपालन, अपर्याप्त निर्यात ब्रांडिंग, खंडित बाजार पहुंच, और आंतरिक और कम निर्यात-तीव्रता वाले क्षेत्रों में लॉजिस्टिक्स संबंधी समस्याएं।
हाल ही में, ईपीएम के तहत वैश्विक टैरिफ वृद्धि से प्रभावित सेक्टरों जैसे कपड़ा, चमड़ा, रत्न एवं आभूषण, इंजीनियरिंग सामान और समुद्री उत्पादों को प्राथमिकता सहायता प्रदान की जाएगी। ये उपाय निर्यात ऑर्डरों को बनाए रखने, रोजगारों की रक्षा करने और नए भौगोलिक क्षेत्रों में विविधीकरण को बढ़ावा देने में मदद करेंगे।
विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में कार्य करेगा, जिसमें आवेदन से लेकर वितरण तक सभी प्रक्रियाओं का प्रबंधन एक समर्पित डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से किया जाएगा। इस मिशन से एमएसएमई के लिए किफायती व्यापार वित्त, अनुपालन और प्रमाणन सहायता, भारतीय उत्पादों की बाजार पहुंच और दृश्यता बढ़ाने, गैर-पारंपरिक जिलों और क्षेत्रों से निर्यात को बढ़ावा देने और विनिर्माण, लॉजिस्टिक्स तथा संबंधित सेवाओं में रोजगार सृजन करने की अपेक्षा की जा रही है। ईपीएम भारत के निर्यात ढांचे को और अधिक समावेशी, प्रौद्योगिकी-सक्षम और वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए एक दूरदर्शी प्रयास का प्रतिनिधित्व करता है, जो विकसित भारत 2047 के विजन के अनुरूप है।