क्या कैप्टन विक्रम बत्रा कारगिल के शेर थे, जिन्होंने देश के लिए जान न्यौछावर की?

सारांश
Key Takeaways
- कैप्टन विक्रम बत्रा का बलिदान हमारे देश की रक्षा का प्रतीक है।
- उनका साहस और नेतृत्व हमें प्रेरित करता है।
- कारगिल युद्ध में उनकी रणनीति अद्वितीय थी।
- उन्होंने दुश्मनों को पराजित करके देश का मान बढ़ाया।
- उनका नाम हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेगा।
नई दिल्ली, 6 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। कैप्टन विक्रम बत्रा, एक ऐसा नाम है जो शौर्य, बलिदान और राष्ट्रभक्ति का प्रतीक है। कारगिल युद्ध के दौरान दुर्गम चोटियों पर विजय प्राप्त करने वाले इस जांबाज योद्धा ने न केवल दुश्मनों को धूल चटाई, बल्कि अपने अदम्य साहस और नेतृत्व से देश के करोड़ों दिलों को छू लिया। हिमाचल की वादियों से उठकर तिरंगे की शान के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले 'शेरशाह' ने साबित कर दिया कि वतन से बढ़कर कुछ नहीं। 7 जुलाई को उन्होंने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी और इतिहास में अमर हो गए।
कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर के पास स्थित घुग्गर गांव में एक पंजाबी-खत्री परिवार में हुआ था। उनके पिता जीएल बत्रा एक स्कूल प्रिंसिपल और माता जय कमल बत्रा एक शिक्षिका थीं।
बत्रा 1996 में मानेकशॉ बटालियन की जेसोर कंपनी में देहरादून में भारतीय सैन्य अकादमी में शामिल हुए। प्रशिक्षण के बाद उन्हें जम्मू-कश्मीर के सोपोर में 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स के लेफ्टिनेंट के रूप में भारतीय सेना में कमीशन दिया गया। बाद में वह कैप्टन के पद तक पहुंचे।
साल 1999 में जब कारगिल युद्ध छिड़ा, उस समय विक्रम बत्रा भारतीय सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में तैनात थे। पॉइंट 5140 पर विजय के बाद 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स को अगला लक्ष्य पॉइंट 4875 को कब्जे में लेना था। 5140 पॉइंट पर जब कब्जा हुआ, कैप्टन बत्रा ने रेडियो पर एक संदेश भेजा था, "यह दिल मांगे मोर।" इस संदेश में आगे की पूरी रणनीति छिपी थी। यहां से अगले टारगेट पॉइंट 4875 के लिए ऑपरेशन शुरू हुआ।
कैप्टन विक्रम बत्रा और उनकी कंपनी को दुर्गम इलाके में दुश्मन की मजबूत चौकियों को साफ कर पॉइंट 4875 तक पहुंचने का काम सौंपा गया। विक्रम बत्रा ने अद्भुत साहस, रणनीति और नेतृत्व का परिचय देते हुए जिम्मेदारी को स्वीकार किया। कैप्टन विक्रम बत्रा ने आमने-सामने की मुठभेड़ में 5 दुश्मन सैनिकों को बेहद नजदीक से मार गिराया, जबकि वह खुद पहले से घायल थे। उन्होंने अगले दुश्मन ठिकाने की ओर बढ़ते हुए हैंड ग्रेनेड फेंके और वहां से भी दुश्मनों को खदेड़ दिया।
मुश्किल हालातों में भारतीय फौज ने पॉइंट 4875 पर झंडा फहरा दिया। हालांकि इस ऑपरेशन में विक्रम बत्रा शहीद हो गए।
इन सभी अभियानों में कैप्टन विक्रम बत्रा का अदम्य साहस, नेतृत्व और बलिदान अमिट छाप छोड़ गया। मरणोपरांत भारत सरकार ने कैप्टन विक्रम बत्रा को भारत के सर्वोच्च सैन्य सम्मान 'परमवीर चक्र' से सम्मानित किया। उनकी याद में पॉइंट 4875 को भी बत्रा टॉप नाम दिया गया।