क्या जम्मू-कश्मीर की चमलियाल दरगाह पर बीएसएफ ने पहली चादर चढ़ाई?

सारांश
Key Takeaways
- चमलियाल दरगाह पर वार्षिक मेला आयोजित किया गया है।
- बीएसएफ ने चादर चढ़ाकर मेले का उद्घाटन किया।
- यह मेला हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है।
- श्रद्धालुओं की मान्यता है कि चादर चढ़ाने से इच्छाएं पूरी होती हैं।
- मेले में सुरक्षा व्यवस्था का विशेष ध्यान रखा गया है।
सांबा, 26 जून (राष्ट्र प्रेस)। जम्मू-कश्मीर के सांबा में गुरुवार को चमलियाल दरगाह पर वार्षिक मेले का उद्घाटन धूमधाम से किया गया। इस आयोजन में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया। परंपरा के अनुसार, मेले की शुरुआत बीएसएफ द्वारा चादर चढ़ाकर की गई। चमलियाल की दरगाह हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों के लिए आस्था का प्रतीक मानी जाती है। मान्यता है कि इस मेले में चादर चढ़ाने से लोगों की सभी प्रकार की मुरादें पूरी होती हैं।
बाबा चमलियाल कमेटी के अध्यक्ष चरण दास ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, "आज का दिन सभी के लिए खुशी का है कि इस मेले का आयोजन किया गया है। श्रद्धालुओं में अपार उत्साह है। हम प्रशासन का धन्यवाद करते हैं जिन्होंने इस मेले का आयोजन किया।"
उन्होंने यहां के युवाओं का भी धन्यवाद किया जिन्होंने इस मेले के आयोजन में दिन-रात मेहनत की। स्थानीय विधायक का भी आभार व्यक्त किया गया, जिन्होंने मेले के आयोजन के लिए सभी आवश्यक व्यवस्थाएं सुनिश्चित कीं।
कमांडेंट अलकेश कुमार सिन्हा ने कहा, "यह मेला खास है। मैं अपने परिवार के साथ यहां आया हूं और मुझे बहुत अच्छा लगा। बीएसएफ हमेशा से इस मेले के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही है।"
सूचना के अनुसार, जम्मू-कश्मीर के सांबा जिले में हर साल चमलियाल की दरगाह पर यह मेला आयोजित होता है, जिसे 'ऊर्स' भी कहा जाता है। यह आयोजन सूफी संत बाबा दिलीप सिंह मन्हास की याद में होता है, जिन्हें हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक माना जाता है।