क्या छत्तीसगढ़ शराब घोटाले में पूर्व सीएम भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य बघेल की मुश्किलें बढ़ गई हैं?
सारांश
Key Takeaways
- चैतन्य बघेल पर आरोप है कि वे शराब घोटाले में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे।
- ईडी ने 3200 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की है।
- घोटाले की कुल राशि 3074 करोड़ रुपए बताई गई है।
- जांच में डिजिटल सबूत शामिल हैं।
- आगे और खुलासे होने की संभावना है।
रायपुर, 22 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। छत्तीसगढ़ के चर्चित शराब घोटाले में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य बघेल की समस्याएं और बढ़ गई हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने सोमवार को रायपुर की विशेष अदालत में उनके खिलाफ आठवीं पूरक चार्जशीट दाखिल की है। यह चार्जशीट लगभग 3200 पन्नों की है। अब तक इस मामले में मूल सहित कुल आठ चार्जशीट अदालत में पेश की जा चुकी हैं।
नई चार्जशीट में गिरफ्तार सभी आरोपियों की जांच की मौजूदा स्थिति का विवरण दिया गया है। साथ ही डिजिटल सबूतों की रिपोर्ट भी शामिल की गई है। जिन आरोपियों की जांच अभी जारी है, उनके बारे में भी वर्तमान स्थिति का उल्लेख किया गया है। मामले की जांच लगातार चल रही है और आगे और खुलासे होने की संभावना है।
जांच एजेंसी के अनुसार, चैतन्य बघेल की भूमिका शराब घोटाले में काफी महत्वपूर्ण थी। वे आबकारी विभाग में अवैध वसूली के तंत्र यानी सिंडिकेट को बनाने, उसका समन्वय करने और संरक्षण देने में प्रमुख भूमिका निभा रहे थे। वे प्रशासनिक स्तर पर सिंडिकेट के हितों के अनुसार काम करने वाले अधिकारियों जैसे अनिल टुटेजा, सौम्या चौरसिया, अरुणपति त्रिपाठी और निरंजन दास के साथ जमीनी स्तर के लोगों जैसे अनवर ढेबर, अरविंद सिंह और विकास अग्रवाल के बीच तालमेल बैठाते थे और उन्हें निर्देश देते थे।
चैतन्य बघेल अनवर ढेबर की टीम से घोटाले की रकम इकट्ठा करते थे और अपने भरोसेमंद लोगों के माध्यम से इसे ऊपरी स्तर तक पहुँचाते थे। उन्होंने त्रिलोक सिंह ढिल्लों की विभिन्न कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी की रकम ली और बैंक के माध्यम से इसे अपनी पारिवारिक फर्मों में स्थानांतरित किया। इस पैसे का उपयोग चल रही रियल एस्टेट परियोजनाओं में किया गया। इसके अलावा, अपने परिवार के दोस्तों और सहयोगियों के जरिए भी बड़ी रकम बैंकिंग चैनल से हासिल कर उसमें निवेश किया गया।
जांच में सबूत मिले हैं कि चैतन्य बघेल ने लगभग 200 से 250 करोड़ रुपए अपने हिस्से में लिए। सिंडिकेट को मिलने वाले उच्चस्तरीय संरक्षण, नीतिगत हस्तक्षेप और प्रभाव के कारण यह घोटाला लंबे समय तक चल सका। अब तक की गणना के अनुसार घोटाले की कुल रकम 3074 करोड़ रुपए बताई गई है, लेकिन आगे की जांच में यह 3500 करोड़ से ज्यादा होने की आशंका है।