क्या छत्तीसगढ़ शराब घोटाले में ईडी ने निरंजन दास और 30 अन्य अधिकारियों की करोड़ों की संपत्तियां अटैच की?
सारांश
Key Takeaways
- ईडी ने निरंजन दास और अन्य अधिकारियों की संपत्तियां अटैच कीं।
- घोटाले में 31 अधिकारियों की मिलीभगत है।
- राज्य को 2800 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।
- अधिकारियों को प्रति केस 140 रुपए का कमीशन मिलता था।
- यह मामला भ्रष्टाचार के खिलाफ जागरूकता बढ़ाता है।
रायपुर, 30 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (पीएमएलए), 2002 के अंतर्गत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के रायपुर जोनल ऑफिस ने छत्तीसगढ़ शराब घोटाले से जुड़े कई अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की है। इस कार्रवाई में आईएएस निरंजन दास (तत्कालीन आबकारी आयुक्त) और 30 अन्य आबकारी अधिकारियों की कुल 38.21 करोड़ रुपए की संपत्तियां अस्थायी रूप से अटैच की गई हैं।
ईडी की जांच में यह स्पष्ट हुआ है कि एक आपराधिक सिंडिकेट ने उच्च स्तर के अधिकारियों और राजनीतिक व्यक्तियों के साथ मिलकर छत्तीसगढ़ आबकारी विभाग को पूरी तरह से हाईजैक कर लिया था। निरंजन दास और अरुण पति त्रिपाठी (तत्कालीन एमडी, सीएसएमसीएल) ने राज्य के नियमों को दरकिनार करते हुए अवैध तरीके से कमाई की।
सिंडिकेट ने 'पार्ट-बी' योजना के तहत सरकारी दुकानों का उपयोग करते हुए बिना हिसाब वाली देसी शराब का निर्माण और बिक्री की। इस योजना में डुप्लीकेट होलोग्राम और बिना रिकॉर्ड वाली बोतलों का इस्तेमाल होता था। यह अवैध शराब सीधे डिस्टिलरी से दुकानों तक पहुंचाई जाती थी, जो कि आबकारी अधिकारियों की मिलीभगत से संभव हुआ।
जांच में यह भी सामने आया कि इस घोटाले में शामिल अधिकारियों को प्रति केस 140 रुपए का कमीशन मिलता था। निरंजन दास ने अकेले 18 करोड़ रुपए की कमाई की और हर महीने 50 लाख रुपए की रिश्वत ली। कुल मिलाकर 31 अधिकारियों ने 89.56 करोड़ रुपए की अवैध कमाई की।
अटैच की गई संपत्तियों में 21.64 करोड़ रुपए की अचल संपत्तियां शामिल हैं, जिनमें 78 प्रॉपर्टीज जैसे लक्जरी बंगले, फ्लैट्स, कमर्शियल शॉप्स और खेती की जमीनें शामिल हैं। इसके अलावा, चल संपत्तियों में 16.56 करोड़ रुपए के 197 आइटम हैं, जिनमें बैंक अकाउंट बैलेंस, एफडी, लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी, इक्विटी शेयर और म्यूचुअल फंड शामिल हैं।
ईडी ने एसीबी/ईओडब्ल्यू रायपुर की एफआईआर के आधार पर अपनी जांच आरंभ की थी, जिसमें आईपीसी, 1860 और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की विभिन्न धाराओं के अंतर्गत केस दर्ज किया गया था। पुलिस की जांच में यह भी पाया गया कि इस घोटाले से राज्य को 2800 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ और आरोपी अधिकारियों ने भारी लाभ कमाया।
यह मौजूदा कुर्की उन अधिकारियों की गहरी मिलीभगत को उजागर करती है, जिन्हें राज्य के राजस्व की रक्षा करने का कार्य सौंपा गया था।