क्या सिविल सेवाओं पर पहले से अधिक जिम्मेदारियां बढ़ी हैं? : उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन
सारांश
Key Takeaways
- सिविल सेवाओं पर बढ़ती जिम्मेदारियां
- ईमानदारी और नैतिकता का महत्व
- सार्वजनिक भर्तियों में पारदर्शिता
- टैलेंट मैपिंग की आवश्यकता
- सिविल सेवकों में नैतिक सोच का होना जरूरी
हैदराबाद, 20 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत के उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन ने शनिवार को हैदराबाद में राज्य लोक सेवा आयोगों के अध्यक्षों के सम्मेलन के समापन सत्र में भाग लिया। इस अवसर पर उन्होंने भारत की शासन व्यवस्था की गुणवत्ता, ईमानदारी, और प्रभावशीलता को सुदृढ़ करने में लोक सेवा आयोगों की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया।
उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन ने सभा में बताया कि जैसे ही भारत ‘विकसित भारत 2047’ के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है, शासन की गुणवत्ता और संस्थानों को संचालित करने वाले लोगों की गुणवत्ता सर्वाधिक महत्वपूर्ण होगी। उन्होंने लोक सेवा आयोगों को संवैधानिक संस्थाएं बताया, जिनकी जिम्मेदारी देश की सेवा के लिए योग्य, निष्पक्ष, और नैतिक व्यक्तियों का चयन करना है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि संविधान में उल्लिखित लोक सेवा आयोगों की स्वतंत्रता सार्वजनिक भर्तियों में योग्यता, निष्पक्षता, और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने बताया कि केंद्र और राज्यों के लोक सेवा आयोगों ने वर्षों से प्रशासन में निरंतरता, स्थिरता, और निष्पक्ष चयन के माध्यम से जनता का विश्वास मजबूत किया है।
उन्होंने बताया कि आज सिविल सेवाओं पर पहले से ज्यादा जिम्मेदारियां हैं। डिजिटल शासन, सामाजिक समावेशन, बुनियादी ढांचा विकास, जलवायु से संबंधित कदम, और आर्थिक परिवर्तन जैसे राष्ट्रीय लक्ष्यों को पूरा करना चुने गए अधिकारियों की गुणवत्ता पर निर्भर करता है।
सीपी राधाकृष्णन ने नैतिक मूल्यों पर जोर देते हुए कहा कि निष्पक्षता सार्वजनिक भर्ती की सबसे बड़ी नैतिक नींव है और पारदर्शिता से ही किसी भी प्रकार के पक्षपात को रोका जा सकता है। उन्होंने चेतावनी दी कि छोटी-सी अनियमितता भी संस्थानों की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा सकती है और सार्वजनिक परीक्षाओं में किसी भी तरह की गड़बड़ी के प्रति शून्य सहनशीलता होनी चाहिए।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि आज प्रभावी शासन के लिए केवल पढ़ाई-लिखाई ही नहीं, बल्कि नैतिक सोच, भावनात्मक समझ, नेतृत्व क्षमता, और टीमवर्क जैसे गुणों वाले सिविल सेवकों की आवश्यकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि लोक सेवा आयोग ज्ञान आधारित परीक्षाओं के साथ-साथ व्यवहार और नैतिक क्षमता का भी निष्पक्ष और व्यवस्थित मूल्यांकन करें।
उन्होंने यह भी कहा कि केवल भर्ती से ही आजीवन उत्कृष्टता सुनिश्चित नहीं होती। इसके लिए प्रदर्शन मूल्यांकन, सतर्कता निगरानी, और समय-समय पर समीक्षा की व्यवस्था को निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से लागू करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि चरित्र और नैतिक आचरण राष्ट्र निर्माण और जनता के विश्वास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
उपराष्ट्रपति ने भारत की जनसांख्यिकीय क्षमता का उल्लेख करते हुए लोक सेवा आयोगों से अपील की कि वे टैलेंट मैपिंग और रोजगार के नए तरीकों पर कार्य करें। इसमें ‘प्रतिभा सेतु’ जैसी पहलों को शामिल किया जा सकता है, ताकि सही व्यक्ति को सही जिम्मेदारी सौंपी जा सके।
अपने संबोधन के अंत में उपराष्ट्रपति ने विश्वास व्यक्त किया कि लोक सेवा आयोग सुशासन की नींव को और मजबूत करेंगे और विकसित तथा आत्मनिर्भर भारत की दिशा में देश की यात्रा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहेंगे।