क्या कांग्रेस ने आरटीआई को मजबूत करने की मांग की है, भाजपा पर आरोप?

सारांश
Key Takeaways
- आरटीआई अधिनियम लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण उपकरण है।
- कांग्रेस ने भाजपा पर इसे कमजोर करने का आरोप लगाया है।
- 2019 के संशोधन को रद्द करने की मांग की गई है।
- सूचना आयुक्तों की स्वायत्तता की सुरक्षा आवश्यक है।
- आरटीआई नागरिक सशक्तिकरण का एक मार्ग है।
नई दिल्ली, 12 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। कांग्रेस के नेता अनिल भारद्वाज ने रविवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम की 20वीं वर्षगांठ पर इसे भारत के लोकतंत्र के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि बताया।
उन्होंने कहा कि 12 अक्टूबर 2005 को यूपीए सरकार और तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के मार्गदर्शन में यह कानून शुरू किया गया था, जिसने भारतीय नागरिकों के संवैधानिक और सामाजिक सशक्तिकरण की नींव रखी। यह अधिनियम लोकतंत्र को पारदर्शी और जिम्मेदार बनाने का एक शक्तिशाली उपकरण साबित हुआ है, जिसने सरकारी कार्यों को जनता के समक्ष लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
अनिल भारद्वाज ने कहा कि आरटीआई अधिनियम ने भारत के लोकतंत्र को विश्व के सबसे सशक्त मॉडलों में से एक बनाने में योगदान दिया है। यूपीए सरकार ने 2014 तक सत्ता में रहते हुए इस कानून को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए निरंतर प्रयास किए।
उन्होंने बताया, “हमारी सरकार ने हमेशा यह सुनिश्चित किया कि सरकारी फाइलों में मौजूद जानकारी जनता को उपलब्ध कराई जाए, जिससे प्रशासनिक पारदर्शिता में वृद्धि हो।”
उन्होंने भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार पर आरटीआई को कमजोर करने का आरोप लगाया। उनका कहना था कि 2014 के बाद से सरकार ने इस जनहितकारी कानून को कमजोर करने के प्रयास किए हैं। 2019 के आरटीआई संशोधन के तहत, सूचना आयुक्तों का कार्यकाल जो पहले पांच वर्ष का था और उनकी सेवा शर्तें सुरक्षित थीं, अब सरकार के अधीन कर दी गई हैं। इससे सूचना आयोग की स्वायत्तता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
अनिल भारद्वाज ने डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (डीपीडीपी) अधिनियम की धारा 43 का भी उल्लेख किया, जिसमें व्यक्तिगत जानकारी साझा करने पर रोक लगाई गई है। उन्होंने इसे आरटीआई के जनहित उद्देश्यों के खिलाफ बताया।
उन्होंने कहा, “यह सरकार आरटीआई को कमजोर करके लोकतंत्र की नींव को कमजोर करने का प्रयास कर रही है। कार्यपालिका का दखल इस कानून की स्वतंत्रता को प्रभावित कर रहा है।”
इस अवसर पर कांग्रेस ने दो प्रमुख मांगें रखीं। पहली, 2019 के आरटीआई संशोधन को समाप्त कर मूल प्रावधानों को पुनर्स्थापित किया जाए, ताकि सूचना आयुक्तों का कार्यकाल और सेवा शर्तें फिर से सुरक्षित हों। दूसरी, डीपीडीपी अधिनियम की धारा 43 की समीक्षा की जाए, जो आरटीआई के जनहित उद्देश्यों को कमजोर करती है।
भारद्वाज ने जोर देकर कहा कि आरटीआई केवल एक कानून नहीं है, बल्कि यह भारत के नागरिकों के लिए सशक्तिकरण का एक रास्ता है।