क्या जम्मू में दशहरा के लिए मेरठ के मुस्लिम कारीगर 40 साल से रावण के पुतले बना रहे हैं?

सारांश
Key Takeaways
- दशहरा उत्सव बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
- मुस्लिम कारीगर 40 साल से पुतले बना रहे हैं।
- यह परंपरा हिंदू-मुसलमान एकता को दर्शाती है।
- पुतले जम्मू-कश्मीर के विभिन्न जिलों में भेजे जाते हैं।
- पुतला निर्माण में हिंदू और मुसलमान दोनों मिलकर काम करते हैं।
जम्मू, 30 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले से मुस्लिम कारीगरों का एक समूह जम्मू के दशहरा महोत्सव के लिए विशाल पुतला बनाने के लिए यहाँ पहुँचा है। इनकी पुतला बनाने की 40 साल पुरानी परंपरा है। इन्हें जम्मू-कश्मीर के विभिन्न जिलों में भेजा जाता है, जहाँ ये पुतला बनाकर देश के विभिन्न राज्यों में भेजते हैं।
केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में दशहरा का पर्व धूमधाम से मनाने की तैयारी जोरों पर चल रही है। दशहरा उत्सव केवल बुराई पर अच्छाई की जीत का ही प्रतीक नहीं है, बल्कि देश के हिंदू-मुस्लिम भाईचारे और देश की एकता-अखंडता का संदेश भी देता है, क्योंकि जिन पुतलों को भगवान श्रीराम आग के हवाले करते हैं, उन्हें मुस्लिम कारीगरों द्वारा ही तैयार किया जाता है।
मेरठ से जम्मू पुतला बनाने गए मोहम्मद ग्यास उद्दीन ने राष्ट्र प्रेस से बात करते हुए बताया कि हम लोग हर साल जम्मू पुतला बनाने के लिए आते हैं। हम लोग एक ही गाँव के ठेकेदार और मजदूर हैं। इसमें 36 हिंदू भाई और 16 मुस्लिम भाई हैं जो मिलकर पुतला बनाते हैं।
उन्होंने कहा कि हम लोग इस बार 5-6 दिन लेट पहुंचे हैं। इसकी वजह से हमारा काम ज्यादा है और समय कम मिल रहा है। हम लोग दिन और रात दोनों समय काम कर रहे हैं। 2 अक्टूबर से पहले ही हमें अपना काम पूरा कर लेना है।
मोहम्मद ग्यास उद्दीन ने बताया कि इस बार लेह में हमारा ऑर्डर कैंसिल हो गया है, जबकि श्रीनगर, पूंछ, रजौरी, उथमपुर, रामनगर सहित कई राज्यों से ऑर्डर हमें मिला है।
उन्होंने बताया कि हम लोग रावण, मेघनाथ, कुंभकर्ण और लंका के पुतले बना रहे हैं। हम लोग 40 साल से अधिक समय से यहाँ काम करने के लिए आते हैं। हर साल, हमारा दशहरा भाईचारे का संदेश देता है। ठेकेदार की तरफ से ही सभी खाने-पीने और व्यवस्था की देखभाल भी एक साथ की जाती है।
उद्दीन ने कहा कि हिंदू और मुसलमान एक साथ काम करते हैं, जो लंबे समय से चली आ रही एकता और सहयोग को दिखाता है। इसका मुख्य उद्देश्य हिंदू-मुसलमान में फूट डालना नहीं है। यह एक कुशल कला है, और कोई भी इसे कर सकता है।