क्या दिल्ली साइबर पुलिस ने क्यूआर कोड फ्रॉड के मास्टरमाइंड को राजस्थान से गिरफ्तार किया?
सारांश
Key Takeaways
- दिल्ली पुलिस ने क्यूआर कोड फ्रॉड के मास्टरमाइंड को गिरफ्तार किया।
- आरोपी ने क्यूआर कोड में छेड़छाड़ कर धोखाधड़ी की।
- पुलिस ने इंटर-स्टेट ऑपरेशन चलाया।
- जांच में कई महत्वपूर्ण सबूत मिले।
- इस मामले ने डिजिटल सुरक्षा की आवश्यकता को उजागर किया।
नई दिल्ली, 23 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। दिल्ली पुलिस की साइबर सेल, नॉर्थ डिस्ट्रिक्ट ने एक चौंकाने वाले क्यूआर कोड फ्रॉड मामले का पर्दाफाश किया है। आरोपी ने दुकानों के असली क्यूआर कोड में छेड़छाड़ कर ग्राहकों के पेमेंट को अपने खाते में डायवर्ट कर दिया था। पुलिस ने इंटर-स्टेट ऑपरेशन के तहत राजस्थान के जयपुर से 19 वर्षीय आरोपी मनीष वर्मा को गिरफ्तार किया।
इस मामले की शुरुआत 13 दिसंबर 2025 को हुई, जब एक व्यक्ति चांदनी चौक की प्रसिद्ध कपड़े की दुकान पर 2.50 लाख रुपए का लहंगा खरीदने गया। उसने दुकान पर दिखाए गए QR कोड को स्कैन करके 90,000 और 50,000 रुपए के दो पेमेंट किए। लेकिन दुकान के मालिक ने कहा कि पैसे उनके ऑफिशियल अकाउंट में नहीं आए। स्क्रीनशॉट दिखाने के बावजूद दावा किया गया कि कोई पेमेंट नहीं हुआ। पीड़ित ने ऑनलाइन शिकायत की, जिसके बाद साइबर नॉर्थ पुलिस स्टेशन में बीएनएस की संबंधित धाराओं के तहत ई-एफआईआर दर्ज की गई।
जांच डीसीपी नॉर्थ के निर्देशन, एसीपी ऑपरेशंस विदुषी कौशिक की नेतृत्व में और एसएचओ साइबर नॉर्थ रोहित गहलोत के सुपरविजन में हुई। टीम ने दुकान का स्पॉट इंस्पेक्शन किया, बिलिंग प्रक्रिया को सत्यापित किया और स्टाफ के बयान लिए। यूपीआई ट्रांजेक्शन ट्रेल से पता चला कि पैसे एक अलग खाते में गए, जो राजस्थान से संचालित हो रहा था।
तकनीकी विश्लेषण, बैंक रिकॉर्ड और डिजिटल फुटप्रिंट्स के आधार पर आरोपी की लोकेशन ट्रेस की गई। जयपुर के चाकसू इलाके में छापेमारी कर मनीष वर्मा को पकड़ा गया। पूछताछ में उसने स्वीकार किया कि उसने एआई-बेस्ड इमेज एडिटिंग ऐप से असली क्यूआर कोड में बदलाव कर मर्चेंट की जानकारियाँ अपनी बदल दीं। फ्रॉड का आइडिया उसे साउथ इंडियन फिल्म 'वेट्टैयान' के एक दृश्य से मिला।
पुलिस ने उसके मोबाइल फोन जब्त किए, जिनमें 100 से ज्यादा एडिटेड क्यूआर कोड, चैट और वित्तीय रिकॉर्ड मिले। ठगी की रकम उसके खाते में ट्रेस हो गई। जांच से खुलासा हुआ कि आरोपी ने व्यवस्थित तरीके से कई दुकानों को टारगेट किया था। इससे अन्य पीड़ितों और ट्रांजेक्शनों की पहचान के लिए नई लाइन्स खुली हैं।