क्या सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों में आरोप तय करने में हो रही देरी पर सख्त रुख अपनाया?
सारांश
Key Takeaways
- सुप्रीम कोर्ट ने आरोप तय करने में देरी पर गंभीर चिंता जताई।
- आरोपी कई बार वर्षों तक जेल में रह सकते हैं।
- समान दिशानिर्देश जारी करने की योजना है।
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के तहत समय सीमा का पालन नहीं हो रहा।
- जवाबदेही बढ़ाने के लिए अदालत ने कदम उठाए हैं।
नई दिल्ली, 29 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को देशभर की अदालतों में आपराधिक मामलों में आरोप तय करने में हो रही लंबी देरी पर गहरी चिंता व्यक्त की है। अदालत ने कहा कि यह देरी न्याय प्रणाली की दक्षता पर गंभीर सवाल उठाती है। कई बार आरोपी वर्षों तक जेल में बंद रहते हैं, लेकिन मुकदमा शुरू नहीं हो पाता।
जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि देशभर में कई ऐसे मामले हैं, जिनमें चार्जशीट दाखिल हुए 3-4 साल हो गए हैं, लेकिन मुकदमा शुरू नहीं हुआ। अदालत ने स्पष्ट संकेत दिया कि वह अब इस समस्या पर पूरे देश के लिए समान दिशानिर्देश जारी करने पर विचार कर रही है, ताकि इस प्रणालीगत देरी को समाप्त किया जा सके।
इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा को अमाइकस क्यूरी (न्यायालय मित्र) नियुक्त किया है। साथ ही भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अटॉर्नी जनरल से भी इस विषय पर न्यायालय की सहायता करने को कहा गया है। अदालत ने बिहार राज्य के वकील को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया है।
पीठ एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें आरोपी करीब दो साल से जेल में था। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि चार्जशीट 2023 में दाखिल की गई थी, लेकिन अभी तक आरोप तय नहीं हुए हैं। इस पर जस्टिस अरविंद कुमार ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, "दीवानी मामलों में मुद्दे तय नहीं होते, आपराधिक मामलों में आरोप तय नहीं होते। आखिर कठिनाई क्या है? अगर यह स्थिति जारी रही, तो हम पूरे देश के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश जारी करेंगे।"
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 251(बी) में यह प्रावधान है कि सत्र न्यायालय के मामलों में पहली सुनवाई से 60 दिनों के भीतर आरोप तय किए जाने चाहिए, लेकिन अदालतों में इसका पालन नहीं हो रहा।