क्या देवी ने खुद भी दुर्गा सप्तशती के पाठ का हर एक श्लोक सुना है? यह मंदिर है इसका प्रमाण

Click to start listening
क्या देवी ने खुद भी दुर्गा सप्तशती के पाठ का हर एक श्लोक सुना है? यह मंदिर है इसका प्रमाण

सारांश

नासिक के प्रसिद्ध श्री सप्तश्रृंगी देवी मंदिर में देवी द्वारा दुर्गा सप्तशती के श्लोक सुनने की अद्भुत कथा है। क्या आप जानते हैं कि ऋषि मार्कंडेय ने इसे कैसे लिखा? जानें इस मंदिर की अनोखी विशेषताओं और धार्मिक महत्व के बारे में।

Key Takeaways

  • दुर्गा सप्तशती का पाठ नवरात्रि में विशेष फलदायी होता है।
  • इस ग्रंथ की रचना ऋषि मार्कंडेय ने की थी।
  • मंदिर की मूर्ति देवी के ध्यान की प्रतीक है।
  • सप्तश्रृंगी देवी मंदिर शक्तिपीठ है।
  • यहां देवी के अनेक रूपों का वर्णन है।

नासिक, 30 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। नवरात्रि के पावन पर्व पर दुर्गा सप्तशती का पाठ अत्यंत शुभ एवं फलदायी माना जाता है। यह ग्रंथ न केवल देवी दुर्गा की महिमा का वर्णन करता है, बल्कि इसके पाठ से भक्तों के जीवन में धन, यश, अन्न और मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसे कब, कहां और किसने लिखा था? आइए जानते हैं।

दुर्गा सप्तशती मार्कंडेय पुराण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसकी रचना महान ऋषि मार्कंडेय ने की थी। इस ग्रंथ में कुल 13 अध्याय हैं, जिनमें 700 श्लोक शामिल हैं।

कहा जाता है कि ऋषि मार्कंडेय ने सप्तश्रृंगी पर्वत के सामने एक खाई में बैठकर देवी भगवती का पाठ कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने दुर्गा सप्तशती की रचना की और स्वयं देवी ने उनके श्लोकों को सुना।

इस घटना से जुड़ी एक दिलचस्प कहानी यह है कि महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित श्री सप्तश्रृंगी देवी मंदिर में देवी की मूर्ति थोड़ी सी टेढ़ी है। ऐसा इसलिए है क्योंकि देवी ने ऋषि मार्कंडेय के पाठ को ध्यान से सुनने के लिए अपना सिर झुकाया था। यह मूर्ति इस घटना का प्रतीक मानी जाती है।

भगवान ब्रह्मा के कमंडल से उत्पन्न गिरिजा महानदी का स्वरूप सप्तशृंगी देवी माना जाता है। यह आदिशक्ति का मूल स्थान है। यह प्रसिद्ध शक्तिपीठ नासिक से केवल 65 किलोमीटर दूर, सह्याद्रि पर्वत श्रृंखलाओं की गोद में, एक ऊँची चोटी पर स्थित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मां दुर्गा ने शेर पर सवार होकर महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था, इसलिए इन्हें महिषासुर मर्दिनी भी कहा जाता है।

इस मंदिर में मां के दर्शन के लिए आपको 472 सीढ़ियां चढ़नी पड़ेंगी। सप्तशृंग पर्वत पर मां भवानी का यह अद्भुत मंदिर सप्तशृंगी देवी के नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह 108 शक्तिपीठों में से एक है, और इसे अर्धशक्तिपीठ के रूप में पूजा जाता है। कहा जाता है कि यहां मां का चेहरा समय-समय पर बदलता रहता है।

माता सप्तश्रृंगी देवी का यह मंदिर सात पर्वतों से घिरा हुआ है, इसलिए उन्हें सात पर्वतों की देवी कहा जाता है। यहां 108 कुंड भी बने हुए हैं।

ऋषि मार्कंडेय द्वारा रचित दुर्गा सप्तशती न केवल देवी की शक्ति और शौर्य का स्तवन करती है, बल्कि यह जीवन की कठिनाइयों से लड़ने की प्रेरणा भी देती है। इस ग्रंथ में देवी के कई रूपों का वर्णन है, जैसे महिषासुर मर्दिनी, चंडा-मुंडा वधिनी आदि, जो बुराई के नाश और अच्छाई की स्थापना का प्रतीक हैं।

नवरात्रि के शुभ अवसर पर दुर्गा सप्तशती का नियमित पाठ करके भक्त अपनी जीवन यात्रा को सफल और मंगलमय बना सकते हैं। यह ग्रंथ देवी की अपार शक्ति का अनुभव कराता है और सभी संकटों को दूर करने में सक्षम है। यही कारण है कि दुर्गा सप्तशती का नवरात्रि में पाठ सदियों से निरंतर होता आ रहा है और इसे अत्यंत शुभ माना जाता है।

Point of View

बल्कि यह भक्तों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने की क्षमता भी रखता है। यह लेख भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं को उजागर करता है।
NationPress
30/09/2025

Frequently Asked Questions

दुर्गा सप्तशती का पाठ कब और कैसे करना चाहिए?
दुर्गा सप्तशती का पाठ नवरात्रि के दौरान नियमित रूप से करना चाहिए। यह पाठ सुबह या शाम को शुद्ध मन और आस्था से करना अधिक फलदायी होता है।
सप्तश्रृंगी देवी मंदिर की विशेषता क्या है?
इस मंदिर की विशेषता यह है कि देवी की मूर्ति थोड़ी टेढ़ी है, जो इस बात का प्रतीक है कि देवी ने ऋषि मार्कंडेय के पाठ को ध्यानपूर्वक सुना।
दुर्गा सप्तशती के पाठ का महत्व क्या है?
दुर्गा सप्तशती का पाठ भक्तों के जीवन में धन, यश और मान-सम्मान की प्राप्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।