क्या एकम्बरेश्वर मंदिर मां पार्वती के प्रेम और तप का प्रतीक है?
सारांश
Key Takeaways
- एकम्बरेश्वर मंदिर मां पार्वती और भगवान शिव के प्रेम का प्रतीक है।
- यह मंदिर तमिलनाडु के कांचीपुरम में स्थित है।
- इसमें अयिरम काल मंडपम और चमत्कारी आम का पेड़ है।
- भक्तों का मानना है कि आम के पेड़ की पूजा से संतान की प्राप्ति होती है।
- यह आम का पेड़ 3500 साल पुराना है।
नई दिल्ली, 15 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। हिंदू धर्म में भगवान शिव की महिमा का वर्णन सबसे अधिक किया गया है। उनका न कोई आदि है न अंत। पंचभूत तत्वों में से एक, पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करने वाला एक चमत्कारी मंदिर तमिलनाडु में स्थित है।
तमिलनाडु के कांचीपुरम में स्थित एकम्बरेश्वर मंदिर आस्था और चमत्कारों का प्रतीक है। भक्त यहां भगवान शिव की उपासना के लिए दूर-दूर से आते हैं। मंदिर में भगवान शिव एकम्बरेश्वर शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं, जबकि उनकी पत्नी मां पार्वती एलावार्कुझाली के रूप में उपस्थित हैं।
एकम्बरेश्वर भारत के सात सबसे महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों में से एक है और यह बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता है।
यह कांचीपुरम का एक बड़ा मंदिर है, जिसका परिसर 40 एकड़ में फैला है। मंदिर में एक हजार स्तंभों वाला अयिरम काल मंडपम भी है, जिसकी दीवारों पर भगवान शिव की विभिन्न प्रतिमाएं उकेरी गई हैं। दीवारों पर 1008 शिवलिंगों की श्रृंखला अद्भुत लगती है। इस मंडपम का निर्माण विजयनगर के राजा कृष्णदेवराय ने किया था।
एकम्बरेश्वर मंदिर मां पार्वती के भगवान शिव के प्रति समर्पण और प्रेम का प्रतीक है। कहा जाता है कि भगवान शिव को पाने के लिए उन्होंने आम के पेड़ के नीचे कठोर तप किया था। भगवान शिव ने मां पार्वती की परीक्षा के लिए आम के पेड़ को भस्म कर दिया, जिससे बचने के लिए मां पार्वती ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी।
भगवान विष्णु ने मां पार्वती की मदद की और पेड़ को सुरक्षित रखा। इसके बाद भगवान शिव ने मां गंगा को उन्हें डुबोने के लिए भेजा, लेकिन मां पार्वती और मां गंगा बहनें हैं, इसलिए मां पार्वती ने उन्हें वापस भेज दिया। भगवान शिव ने मां पार्वती के दृढ़ संकल्प को देखकर प्रसन्न होकर मानव रूप में अवतरित होकर उनसे विवाह किया।
जिस पेड़ के नीचे मां पार्वती ने भगवान शिव के लिए तप किया था, भक्त उसे चमत्कारी पेड़ मानते हैं। भक्तों का मानना है कि जो भी निसंतान दंपत्ति इस आम के पेड़ की पूजा करते हैं, उन्हें गुणी संतान की प्राप्ति होती है।
यह आम का पेड़ 3500 साल से अधिक पुराना है और अभी भी पेड़ पर चार प्रकार के आम लगते हैं। ऐसा कहा जाता है कि ये चारों वेदों का प्रतीक हैं।