क्या गौ माता को ठंड से बचाने के लिए स्पेशल इको-थर्मल कंबल तैयार किए जा रहे हैं?
सारांश
Key Takeaways
- गो-कल्याण योजना अब नवाचार और महिला सशक्तिकरण पर केंद्रित है।
- मलावन गोशाला में इको-थर्मल कंबल बनाए जा रहे हैं।
- महिलाओं को रोजगार के नए अवसर मिल रहे हैं।
- यह पहल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रही है।
- गो माता की सुरक्षा के लिए यह योजना महत्वपूर्ण है।
लखनऊ, 16 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। उत्तर प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी गो-कल्याण योजना अब केवल संरक्षण तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि नवाचार और महिला सशक्तिकरण का एक मजबूत मॉडल बनकर उभर रही है। एटा जनपद की मलावन गोशाला में शुरू हुई यह पहल प्रदेश में आत्मनिर्भर गोशालाओं की नई तस्वीर पेश कर रही है। यहां गौ माता को ठंड से बचाने के लिए फूस और टाट की बोरी से तैयार विशेष प्रकार के ‘इको-थर्मल कंबल’ बनाए जा रहे हैं।
ये कंबल न केवल पर्यावरण के अनुकूल हैं, बल्कि कम लागत में तैयार होकर गो संरक्षण को भी मजबूती प्रदान कर रहे हैं। इसके साथ ही गोशाला में बर्मी कम्पोस्ट और गोबर से ‘गो-कास्ट’ जैसे नवाचारी उत्पाद भी तैयार किए जा रहे हैं, जिसका बाजार में जबरदस्त डिमांड है।
एटा के मुख्य विकास अधिकारी डॉ. नागेंद्र नारायण मिश्र ने इस मॉडल को गो-कल्याण, पुनर्चक्रण और ग्रामीण आजीविका का उत्कृष्ट संयोजन बताया। उन्होंने बताया कि जिलाधिकारी प्रेमरंजन सिंह के नेतृत्व में गोशाला को आय का बेहतर स्रोत बनाया जा रहा है। जो गोशालाएं पहले बोझ मानी जाती थीं, वे अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर इकाइयां बन रही हैं।
सीडीओ डॉ. नागेंद्र नारायण मिश्र ने बताया कि कार्ययोजना के तहत प्रशिक्षण देकर 30 सखी दीदियों को तैयार किया जा रहा है, जो गोबर से अगरबत्ती, धूपबत्ती, मोमेंटो और गमले जैसे उत्पाद बनाएंगी। इसके अलावा मलावन राष्ट्रीय राजमार्ग के पास एक स्थायी मार्केट प्लेस विकसित किया जाएगा, जहां गो आधारित उत्पादों की सीधी बिक्री होगी।
इस पहल का सबसे प्रभावशाली पक्ष यह है कि इससे स्वयं सहायता समूह की महिलाएं हर माह निश्चित आय अर्जित कर सकेंगी। महिलाओं ने बताया कि वे आगे भी गोशाला संचालन, स्वच्छता, पोषण प्रबंधन और उत्पाद निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाते हुए इसे आत्मनिर्भर गोशाला मॉडल के रूप में विकसित करती रहेंगी। सरकार की योजना से साफ है कि गोसेवा और रोजगार साथ-साथ चल सकते हैं। नवाचार, पर्यावरण संरक्षण और महिला सशक्तिकरण के जरिए प्रदेश की गोशालाएं अब बोझ नहीं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मजबूत कड़ी बनती जा रही हैं।