गोपाष्टमी: यह पर्व क्यों मनाते हैं? जानें इसकी कथा
सारांश
Key Takeaways
- गोपाष्टमी का पर्व गायों की पूजा का प्रतीक है।
- इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने गायों को चराना शुरू किया था।
- ब्रज क्षेत्र में इस पर्व का विशेष महत्व है।
नई दिल्ली, 28 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन से भगवान श्रीकृष्ण ने गायों को चराना प्रारंभ किया था। यह पर्व विशेष रूप से ब्रज क्षेत्र में धूमधाम से मनाया जाता है।
गोपाष्टमी भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं से जुड़ा हुआ एक महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन ब्रजवासी गायों को स्नान करवा कर उनकी पूजा अर्चना करते हैं। इसके पीछे एक प्रसिद्ध कथा है, जिसमें कहा गया है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने गायों को चराना शुरू किया। गोपाष्टमी के बारे में दो प्रमुख कथाएँ प्रचलित हैं।
पहली कथा के अनुसार, जब भगवान श्री कृष्ण 6 वर्ष के थे, तब उन्होंने माता यशोदा से कहा कि वह भी बड़े हो गए हैं और गायों को चराने जाएंगे। यह सुनकर माता यशोदा ने मुस्कुराते हुए कहा, "बेटा, इसके लिए अपने पिता नंद बाबा से बात करो।"
बाल गोपाल ने अपने पिता से गाय चराने की जिद की, लेकिन नंद बाबा ने उन्हें मना किया कि वह अभी छोटे हैं। परंतु कृष्ण ने हार नहीं मानी। अंततः नंद बाबा ने कहा, "ठीक है, पंडित जी को बुलाओ।"
पंडित जी ने पंचांग देखकर कहा कि आज गाय चराने का शुभ मुहूर्त है। यह सुनते ही बाल गोपाल खुशी से कूद पड़े और गायों को चराने चले गए। यह दिन कार्तिक पक्ष की शुक्ल अष्टमी था। तभी से ब्रज में गोपाष्टमी मनाने की परंपरा शुरू हुई।
दूसरी कथा गोवर्धन लीला से जुड़ी है, जिसमें बताया गया है कि भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा अंगुली पर उठाकर ब्रजवासियों और गायों को इंद्र देव के क्रोध से बचाया। अष्टमी के दिन इंद्र देव ने श्री कृष्ण से क्षमा मांगी थी और कामधेनु गाय ने उनका दूध से अभिषेक किया।