क्या डिलीवरी के दौरान महिला के पेट में कपड़ा छोड़ना मेडिकल लापरवाही है?
सारांश
Key Takeaways
- मेडिकल लापरवाही के मामले में रिपोर्ट दर्ज कराना आवश्यक है।
- पीड़ितों को अपनी आवाज उठाने का अधिकार है।
- सुरक्षा मानकों का पालन सभी अस्पतालों के लिए अनिवार्य है।
- लंबे समय तक दर्द को अनदेखा न करें।
- कोर्ट से न्याय पाने का विकल्प हमेशा मौजूद है।
ग्रेटर नोएडा, 27 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। ग्रेटर नोएडा से एक गंभीर मेडिकल लापरवाही का मामला सामने आया है। एक निजी अस्पताल में डिलीवरी के दौरान महिला के पेट में लगभग आधा मीटर कपड़ा छोड़ने का आरोप लगाया गया है।
अपराध की गंभीरता को समझते हुए, यह जानकर हैरानी होती है कि महिला को इस लापरवाही का पता डेढ़ साल बाद चला, जब पेट में दर्द के कारण उसने दूसरे अस्पताल में इलाज कराया। दूसरे ऑपरेशन के दौरान चिकित्सकों ने महिला के पेट से कपड़ा निकाला, जिससे यह मामला उजागर हुआ। अदालत के निर्देश पर अब इस मामले में अस्पताल के डॉक्टर, मालिक और जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) समेत छह लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है।
यह मामला ग्रेटर नोएडा के डेल्टा-1 निवासी अंशुल वर्मा से संबंधित है। अंशुल ने बताया कि 14 नवंबर 2023 को उन्हें तुगलपुर स्थित बैक्सन अस्पताल में डिलीवरी के लिए भर्ती कराया गया था। डिलीवरी सर्जरी डॉ. अंजना अग्रवाल की टीम द्वारा की गई थी। आरोप है कि ऑपरेशन के दौरान चिकित्सकों ने पेट के अंदर कपड़ा छोड़ दिया।
16 नवंबर 2023 को अंशुल को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। डिलीवरी के बाद से ही अंशुल को पेट में तेज दर्द महसूस हुआ। शुरुआत में इसे सामान्य दर्द समझा गया, लेकिन समय के साथ दर्द बढ़ गया। पेट में गांठ जैसी स्थिति महसूस होने लगी। लगभग डेढ़ साल तक दर्द सहन करने के बाद 22 मार्च 2025 को उन्होंने यथार्थ अस्पताल में इलाज कराया। वहां दवाएं दी गईं, लेकिन दर्द का असली कारण नहीं पता चला। इसके बाद अंशुल ने जिम्स और अन्य निजी अस्पतालों में भी इलाज कराया। अल्ट्रासाउंड, एमआरआई और कैंसर की जांच भी कराई गई, लेकिन सभी रिपोर्ट सामान्य आईं।
आखिरकार 22 अप्रैल 2025 को कैलाश अस्पताल में डॉक्टरों ने पेट में गांठ की समस्या को देखते हुए ऑपरेशन की सलाह दी। इस ऑपरेशन के दौरान महिला के पेट से लगभग आधा मीटर कपड़ा निकाला गया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि पहली डिलीवरी सर्जरी में भारी लापरवाही हुई थी। घटना के बाद अंशुल और उनके पति विकास वर्मा ने बैक्सन अस्पताल और स्वास्थ्य विभाग में शिकायत दर्ज कराई।
आरोप है कि अस्पताल प्रबंधन ने मामले को दबाने का प्रयास किया और सीएमओ कार्यालय में जांच को जानबूझकर लटकाया गया। कपड़े की एफएसएल जांच तक नहीं कराई गई और दंपती को धमकाने के आरोप भी लगाए गए। न्याय न मिलने पर दिसंबर 2025 में अंशुल ने कोर्ट का रुख किया। कोर्ट के आदेश पर 24 दिसंबर को नॉलेज पार्क कोतवाली पुलिस ने बैक्सन अस्पताल के डॉक्टर अंजना अग्रवाल, अस्पताल मालिक मनीष गोयल, गौतम बुद्ध नगर के सीएमओ नरेंद्र मोहन और जांच अधिकारी समेत छह लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की।
पीड़िता अंशुल वर्मा का कहना है कि उन्होंने लंबे समय तक असहनीय दर्द झेला है और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। उनके पति विकास वर्मा ने कहा कि वे इस लड़ाई को अंतिम दम तक लड़ेंगे, ताकि भविष्य में किसी और महिला के साथ ऐसी लापरवाही न हो। यह मामला न केवल चिकित्सा व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है, बल्कि मरीजों की सुरक्षा को लेकर भी गंभीर चिंता पैदा करता है।