क्या गुजरात में 17 जिलों के जनजातीय समुदायों के 2,000 व्यक्तियों की जीनोम सीक्वेंसिंग होगी?

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क्या गुजरात में 17 जिलों के जनजातीय समुदायों के 2,000 व्यक्तियों की जीनोम सीक्वेंसिंग होगी?

सारांश

गुजरात ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक नया कदम उठाया है, जहां जनजातीय समुदायों के 2,000 व्यक्तियों की जीनोम सीक्वेंसिंग की जाएगी। यह परियोजना जनजातीय स्वास्थ्य के लिए एक मील का पत्थर साबित होगी। जानें इस महत्वाकांक्षी पहल के बारे में।

Key Takeaways

  • गुजरात में जनजातीय स्वास्थ्य के लिए जीनोम अनुक्रमण परियोजना की शुरुआत।
  • 2,000 जनजातीय व्यक्तियों का जीनोम सीक्वेंसिंग होगा।
  • जन्मजात बीमारियों के आनुवंशिक मार्करों की पहचान।
  • आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर डेटा विश्लेषण।
  • जनजातीय समुदायों के लिए संदर्भ जीनोम डेटाबेस का निर्माण।

गांधीनगर, 16 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। फार्मास्यूटिकल्स और रसायन उद्योगों के बाद गुजरात ने अब जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी एक नई दिशा अपनाई है। जनजातीय क्षेत्रों के नागरिकों के स्वास्थ्य में सुधार के लिए एक जनजातीय जीनोम अनुक्रमण परियोजना की शुरुआत की गई है। इस प्रकार का प्रोजेक्ट आरंभ करने वाला गुजरात पहला राज्य बन गया है। जनजातीय मामलों के मंत्री डॉ. कुबेरभाई डिंडोर ने इस उपलब्धि की जानकारी साझा की।

गांधीनगर में जनजातीय विकास मंत्री डॉ. कुबेरभाई डिंडोर और राज्य के आदिवासी विकास मंत्री कुंवरजी हलपति की अध्यक्षता में इस परियोजना पर एक संवाद सत्र का आयोजन किया गया।

मंत्री डिंडोर ने कहा, "यह परियोजना विज्ञान और परंपरा के बीच एक पुल के रूप में कार्य करेगी, जो आदिवासी समुदाय के समृद्ध और स्वस्थ भविष्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगी। यह परियोजना जनजातीय नागरिकों के स्वास्थ्य कल्याण के लिए अत्यधिक लाभकारी होगी। यह गुजरात जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान केंद्र-जीबीआरसी द्वारा कार्यान्वित की जाएगी। इस परियोजना के अंतर्गत गुजरात के 17 जिलों के विभिन्न जनजातीय समुदायों के 2,000 व्यक्तियों का जीनोम सीक्वेंसिंग किया जाएगा।"

यह परियोजना जन्मजात प्रतिरक्षा, कैंसर और अन्य वंशानुगत बीमारियों जैसे सिकल सेल एनीमिया, थैलेसीमिया आदि के लिए आनुवंशिक मार्करों की पहचान करने में सहायक होगी। इसके अलावा, उनकी स्वास्थ्य प्रोफाइल को सहायक स्वास्थ्य सेवाओं से जोड़ा जाएगा।

इस संवाद में विशेषज्ञों ने जनजातीय समुदायों के स्वास्थ्य के लिए जीनोमिक जानकारी के महत्व पर चर्चा की। ट्रायबल जीनोम परियोजना केवल एक वैज्ञानिक प्रयास नहीं है, बल्कि जनजातीय समुदायों के स्वास्थ्य में स्थायी सुधार पर केंद्रित एक अभियान है, जिसमें ट्रायबल समुदाय से नमूनों के भौतिक संग्रह से लेकर डेटा विश्लेषण तक सभी चरणों में अत्याधुनिक संसाधनों का उपयोग किया जाएगा।

यह उल्लेखनीय है कि वित्तीय वर्ष 2025-26 के बजट के दौरान 'गुजरात में जनजातीय आबादी के लिए संदर्भ जीनोम डेटाबेस का निर्माण' नामक परियोजना को मंजूरी दी गई है, जिसके तहत गुजरात के जनजातीय समुदाय के लिए एक संदर्भ डेटाबेस बनाने का लक्ष्य है। यह परियोजना जनजातीय समुदायों के जीनोमिक डेटा की कमी की विसंगति को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

इस अवसर पर गुजरात के जनजातीय क्षेत्रों के सांसद, विधायक, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की प्रधान सचिव मोना खंधार, जनजातीय विकास विभाग की प्रधान सचिव शाहमीना हुसैन, मुख्यमंत्री के सचिव डॉ. विक्रांत पांडे, जीएसबीटीएम के मिशन निदेशक दिग्विजय सिंह जडेजा, जीबीआरसी के निदेशक प्रो. चैतन्य जोशी, जनजातीय विकास निदेशक आशीष कुमार सहित वैज्ञानिकों और जनजातीय समुदाय के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

Point of View

जो कि देश के समग्र स्वास्थ्य मानकों के लिए एक सकारात्मक कदम है। यह पहल न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।
NationPress
04/08/2025

Frequently Asked Questions

गुजरात की जीनोम सीक्वेंसिंग परियोजना का उद्देश्य क्या है?
इस परियोजना का उद्देश्य जनजातीय समुदायों के स्वास्थ्य में सुधार करना और आनुवंशिक बीमारियों के लिए मार्करों की पहचान करना है।
इस परियोजना में कितने जनजातीय समुदाय शामिल हैं?
इस परियोजना में गुजरात के 17 जिलों के विभिन्न जनजातीय समुदायों के 2,000 व्यक्तियों को शामिल किया जाएगा।
इस परियोजना का कार्यान्वयन कौन करेगा?
यह परियोजना गुजरात जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान केंद्र-जीबीआरसी द्वारा कार्यान्वित की जाएगी।
जीनोम सीक्वेंसिंग से क्या लाभ होगा?
जीनोम सीक्वेंसिंग से यह जानने में मदद मिलेगी कि जनजातीय समुदायों में कौन-कौन सी आनुवंशिक बीमारियाँ प्रचलित हैं और उनके उपचार में मदद मिलेगी।
क्या यह परियोजना अन्य राज्यों में भी लागू होगी?
इस समय यह परियोजना केवल गुजरात में लागू की जा रही है, लेकिन भविष्य में इसे अन्य राज्यों में भी लागू करने की योजना बनाई जा सकती है।