क्या हमारी भूमि में गौरव की नई ऊंचाई हासिल करने की क्षमता है?, पीएम मोदी ने भागवत के संबोधन की सराहना की

सारांश
Key Takeaways
- मोहन भागवत का संबोधन प्रेरणादायक था।
- आरएसएस का राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान है।
- भारत को महाशक्ति बनने के लिए व्यक्तिगत और राष्ट्रीय चरित्र को मजबूत करना होगा।
- 'पंच परिवर्तन' पहल सामाजिक समरसता और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देती है।
- पड़ोसी देशों में अस्थिरता पर चिंता व्यक्त की गई।
नई दिल्ली, 2 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विजयादशमी के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत के संबोधन की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि भागवत का यह संबोधन न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि इससे पूरे विश्व को लाभ होगा।
प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर लिखा, "संघचालक डॉ. मोहन भागवत का प्रेरणादायक संबोधन, जिसमें उन्होंने राष्ट्र निर्माण में आरएसएस के समृद्ध योगदान पर प्रकाश डाला और हमारी भूमि में गौरव की नई ऊंचाइयों को हासिल करने की अंतर्निहित क्षमता पर बल दिया, इसके माध्यम से संपूर्ण विश्व को लाभ होगा।"
इससे पहले, नागपुर के ऐतिहासिक रेशमबाग मैदान में शताब्दी समारोह में बोलते हुए, मोहन भागवत ने राष्ट्र के लिए संघ के दृष्टिकोण और लक्ष्यों को पेश किया और समाज से ऐसा 'आदर्श' बनाने का आग्रह किया जो साथी नागरिकों को भारत की प्रगति में योगदान देने के लिए प्रेरित कर सके।
उन्होंने कहा कि भारत को एक महाशक्ति के रूप में उभरने के लिए, व्यक्तिगत और राष्ट्रीय चरित्र, दोनों को मजबूत करना होगा। संघ शाखाओं की भूमिका की व्याख्या करते हुए भागवत ने कहा कि वे मूल्यों और अनुशासन को बढ़ावा देने वाले दैनिक कार्यक्रमों के माध्यम से राष्ट्रीय पहचान और गौरव का संचार करते हैं।
मोहन भागवत ने कहा कि शताब्दी वर्ष में आरएसएस का लक्ष्य 'व्यक्ति निर्माण' के कार्य को पूरे देश में विस्तार देना है, जिसमें 'पंच परिवर्तन' पहल को स्वयंसेवकों के उदाहरणों के माध्यम से समाज के सभी वर्गों की ओर से अपनाया जाएगा।
उन्होंने कहा कि 'पंच परिवर्तन' के मूल्य सामाजिक समरसता, पारिवारिक मूल्यों के संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण, आत्म-सम्मान और आत्मनिर्भरता व कानूनी, नागरिक और संवैधानिक कर्तव्यों के पालन पर केंद्रित हैं।
भागवत ने पड़ोसी देशों में बढ़ती अस्थिरता पर भी चिंता व्यक्त की और व्यापक जन असंतोष के कारण श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में हुए शासन परिवर्तनों का हवाला दिया। उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसी घटनाएं भारत के भीतर सतर्कता और आत्मनिरीक्षण की मांग करती हैं।