क्या हरिद्वार के कुशावर्त घाट पर पितरों के श्राद्ध से स्वर्ग के द्वार खुलते हैं?

सारांश
Key Takeaways
- हरिद्वार का कुशावर्त घाट पितृ कार्य के लिए सर्वश्रेष्ठ है।
- पितृपक्ष में यहाँ श्राद्ध का महत्व कई गुना बढ़ जाता है।
- नारायण शिला पर अनुष्ठान करने से प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है।
- हरिद्वार में गंगा किनारे किए गए अनुष्ठान से सुख-समृद्धि आती है।
- धार्मिक ग्रंथों में हरिद्वार को पितृ कार्य के लिए सर्वोत्तम स्थान बताया गया है।
हरिद्वार, 16 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। उत्तराखंड में स्थित हरिद्वार हिंदू धर्म का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। यहाँ पूरे वर्ष देश-विदेश से श्रद्धालु गंगा स्नान, धार्मिक अनुष्ठान और विशेष रूप से पितृ कार्य करने आते हैं। धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि हरिद्वार में किए गए धार्मिक कर्मकांड से संपूर्ण फल की उपलब्धि होती है, जबकि पितृपक्ष के दौरान यहाँ किए गए श्राद्ध और तर्पण का महत्व कई गुना बढ़ जाता है।
पितृपक्ष में गयाजी में किए जाने वाले श्राद्ध की तरह ही हरिद्वार का भी विशेष स्थान माना गया है। यहाँ कुशावर्त घाट और नारायण शिला पितृ कार्य के लिए सर्वोत्तम माने गए हैं। कुशावर्त घाट पर श्राद्ध करने से पितरों को शांति मिलती है, जबकि नारायण शिला पर अनुष्ठान करने से प्रेत योनि से मुक्ति का मार्ग खुलता है।
हर की पैड़ी के पास स्थित कुशावर्त घाट का उल्लेख स्कंद पुराण और अन्य ग्रंथों में मिलता है। मान्यता है कि यहाँ पिंडदान, तर्पण और तिलांजलि करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वे अपने लोक को लौट जाते हैं।
प्राचीन काल में इस क्षेत्र में बड़े-बड़े कुश के वृक्ष हुआ करते थे, जिन्हें हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना गया है। यही कारण है कि इस घाट पर श्राद्ध कराने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं।
देवपुरा में स्थित नारायणी शिला को पितरों की मुक्ति का विशेष स्थल माना गया है। धार्मिक मान्यता है कि यहाँ पिंडदान और पितृ पूजा करने से नाराज पितृ भी प्रसन्न हो जाते हैं। जिनके पितर प्रेत योनि में भटक रहे हों, उन्हें इस स्थल पर श्राद्ध कराने से शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
हर की पैड़ी पर स्थित अस्थि प्रवाह घाट देशभर से आने वाले लोगों का प्रमुख केंद्र है। यहाँ पितरों की अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करने के बाद पिंडदान, तर्पण और तिलांजलि दी जाती है। कहा जाता है कि इस घाट पर किया गया धार्मिक अनुष्ठान आत्मा को स्वर्गलोक तक पहुंचाने में सहायक होता है।
हिंदू धर्म के विभिन्न ग्रंथों में हरिद्वार को पितृ कार्य के लिए सर्वोत्तम स्थान बताया गया है। आश्विन मास के दौरान पितृपक्ष में गंगा किनारे किए गए अनुष्ठान न केवल पितरों की आत्मा को शांति देते हैं, बल्कि श्राद्धकर्ता के जीवन में भी सुख-समृद्धि लाते हैं।