क्या महाराष्ट्र नगर निगम चुनावों में भाजपा के 6 उम्मीदवारों ने मतदान से पहले ही जीत हासिल की?

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क्या महाराष्ट्र नगर निगम चुनावों में भाजपा के 6 उम्मीदवारों ने मतदान से पहले ही जीत हासिल की?

सारांश

महाराष्ट्र नगर निगम चुनावों में भाजपा की जीत ने पार्टी को मतदान से पहले ही मजबूत स्थिति में ला खड़ा किया है। छह उम्मीदवारों ने निर्विरोध जीत प्राप्त की है, जिससे भाजपा का मनोबल ऊँचा हुआ है। जानिए इस चुनाव की महत्ता और संभावित प्रभावों के बारे में।

Key Takeaways

  • भाजपा की छह उम्मीदवारों की निर्विरोध जीत
  • महिला नेताओं का योगदान
  • कई नामांकन रद्द होने के कारण
  • मुख्यमंत्री का बयान
  • महायुति में मतभेदों की स्थिति

मुंबई, 31 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। महाराष्ट्र के 29 नगर निगमों के चुनावों के लिए नामांकन पत्रों की जांच बुधवार को संपन्न हुई। मतदान से पूर्व ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को एक महत्वपूर्ण सफलता मिली, जब उसके छह उम्मीदवार बिना किसी मुकाबले के जीत गए। इससे भाजपा चुनाव में प्रवेश करने से पहले ही एक मजबूत स्थिति में आ गई है।

कल्याण-डोंबिवली नगर निगम में भाजपा ने बिना मुकाबले सभी तीन सीटों पर जीत दर्ज कर हैट्रिक पूरी की। वार्ड 18-ए (ओबीसी आरक्षित) से रेखा चौधरी एकमात्र उम्मीदवार थीं और उन्हें निर्विरोध चुना गया। वह भाजपा महिला मोर्चा की जिला अध्यक्ष और अनुभवी पार्षद हैं। वार्ड 26-सी से पहली बार चुनाव लड़ने वाली आसवरी नवरे भी बिना मुकाबले जीत गईं। वार्ड 26-बी से रंजना पेरकर ने भी निर्विरोध जीत हासिल की, जिससे भाजपा के लिए कल्याण-डोंबिवली नगर निगम में तीनों प्रारंभिक जीतें महत्वपूर्ण हो गईं।

भाजपा के राज्य अध्यक्ष रविंद्र चव्हाण ने विजेताओं को बधाई दी और कहा कि महिला नेताओं ने पार्टी का खाता खोला। उन्होंने तीनों निर्विरोध चुने गए उम्मीदवारों और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के बीच वीडियो कॉल भी करवाई।

पनवेल नगर निगम में भाजपा के नितिन पाटिल ने भी बिना मुकाबले जीत हासिल की। उनके एकमात्र प्रतिद्वंद्वी, किसान और मजदूर पार्टी के रोहन गावंड का नामांकन जाति प्रमाण पत्र में गलती के चलते रद्द कर दिया गया।

धुले नगर निगम में भाजपा ने दो सीटें बगैर मुकाबले जीत लीं। एनसीपी (शरद पवार समूह) के शहर जिला अध्यक्ष रंजीत भोसले की पत्नी उज्ज्वला भोसले दो दिन पहले भाजपा में शामिल हुईं। उनके विरोधी उम्मीदवारों के नामांकन रद्द होने के बाद उनकी जीत सुनिश्चित हो गई। वार्ड 6-बी से ज्योत्सना प्रफुल पटील ने भी निर्विरोध जीत हासिल की।

अधिकतर निर्विरोध जीत तकनीकी कारणों से विरोधियों के नामांकन रद्द होने या आरक्षित वार्ड में कोई प्रतियोगिता न होने के कारण हुईं।

मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि हर सीट महत्वपूर्ण है, लेकिन बिना मुकाबले जीत का मतलब है कि जनता का विश्वास अधिक है और कुछ क्षेत्रों में मजबूत विरोधी नहीं हैं। पार्टी नेताओं ने कहा कि शुरुआती सफलता ने कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया है।

इस चुनाव में महायुति गठबंधन के भीतर मतभेद भी उभरे हैं। भाजपा और शिवसेना (शिंदे समूह) मुंबई और ठाणे में सीट साझेदारी कर रही हैं, लेकिन 29 नगर निगमों में से 24 में गठबंधन के बीच सहमति नहीं बन पाई। इस स्थिति में महायुति की तीन पार्टियां, भाजपा, शिंदे-शिवसेना और अजित पवार-एनसीपी, कई शहरों में एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ेंगी।

जिन जिलों में ये पार्टियां एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ती नजर आएंगी, उनमें जलना, परभणी, लातूर, अमरावती, पिंपरी-चिंचवड़, छत्रपति संभाजीनगर, सोलापुर, अकोला, मालेगांव, नांदेड, नागपुर, सांगली, नासिक, धुले, पुणे, मुंबई, ठाणे, उल्हासनगर, नवी मुंबई, मीरा-भायंदर, भिवंडी और वसई-विरार शामिल हैं।

भाजपा–एनसीपी (अजित पवार) गठबंधन केवल अकोला, अहिल्यानगर और पनवेल में है। भाजपा–शिवसेना (शिंदे) गठबंधन केवल चंद्रपुर, नागपुर, मुंबई, ठाणे, कल्याण-डोंबिवली और भिवंडी में है।

इसके अतिरिक्त, महायुति की पार्टियां इचलकरंजी (फ्रेंडली फाइट), कोल्हापुर, जलगांव और पनवेल में भी सीधे मुकाबले में होंगी।

Point of View

जबकि महायुति के भीतर मतभेदों ने चुनौती को और बढ़ा दिया है। यह चुनाव केवल स्थानीय राजनीति तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके परिणाम व्यापक रूप से राज्य की राजनीति को प्रभावित कर सकते हैं।
NationPress
31/12/2025

Frequently Asked Questions

भाजपा के कितने उम्मीदवार बिना मुकाबले जीते?
भाजपा के छह उम्मीदवार बिना मुकाबले जीत गए।
भाजपा की कौन सी महिला नेता ने निर्विरोध जीत हासिल की?
रेखा चौधरी ने वार्ड 18-ए से निर्विरोध जीत हासिल की।
क्या कारण थे जिनसे उम्मीदवारों के नामांकन रद्द हुए?
बिना मुकाबले जीतें तकनीकी कारणों से विरोधियों के नामांकन रद्द होने के कारण हुईं।
मुख्यमंत्री ने भाजपा की जीत पर क्या कहा?
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि बिना मुकाबले जीत का मतलब है जनता का अधिक विश्वास।
महायुति के भीतर क्या मतभेद हैं?
भाजपा और शिवसेना के बीच सीट साझेदारी को लेकर मतभेद हैं, जिससे कुछ नगर निगमों में सहमति नहीं बन पाई।
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