क्या नगीना सांसद चंद्रशेखर आजाद को यौन शोषण केस में राहत मिली?
सारांश
Key Takeaways
- चंद्रशेखर आजाद को अदालत से राहत मिली।
- महिला डॉक्टर की याचिका खारिज कर दी गई।
- अदालत ने आवश्यक प्रक्रिया का पालन न करने पर याचिका खारिज की।
- इस मामले में कई गंभीर आरोप शामिल हैं।
- अगली कार्रवाई का अभी कोई स्पष्ट संकेत नहीं है।
नई दिल्ली, १ नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। नगीना के सांसद और आजाद समाज पार्टी (कांशी राम) के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद को शनिवार को महत्वपूर्ण राहत मिली। दिल्ली की एक अदालत ने महिला डॉक्टर द्वारा दायर की गई उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें दिल्ली पुलिस को नेता के खिलाफ यौन शोषण के आरोप में मामला दर्ज करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
एडिशनल चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट नेहा मित्तल ने डॉक्टर रोहिणी घवारी की उस अर्जी को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने दिल्ली के आईजीआई एयरपोर्ट थाने के एसएचओ को एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देने के लिए कहा था।
कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता ने बीएनएसएस की धारा 173(4) का पालन नहीं किया, जो आवश्यक है। इसलिए यह अर्जी स्वीकार योग्य नहीं है और इसे खारिज किया जाता है।
स्विट्जरलैंड की डॉक्टर घवारी ने आरोप लगाया कि आरोपी ने उन पर कई गंभीर अपराध किए। इनमें शादी का झूठा वादा करके बार-बार यौन उत्पीड़न, धमकी देना, छिपकर तस्वीरें लेना, पीछा करना, धोखा देना, तकनीक का गलत इस्तेमाल और जान-इज्जत को खतरा शामिल है।
डॉक्टर का कहना है कि अक्टूबर २०२१ में भारत आने पर आरोपी उन्हें दिल्ली के पुलमन होटल ले गया। वहां उनकी मर्जी और सहमति के खिलाफ बलात्कार किया और शादी का झूठा वादा करके कई घंटों तक होटल में बंद रखा।
उसने आरोप लगाया कि उसने नई दिल्ली के आईजीआई एयरपोर्ट पुलिस स्टेशन में अपनी शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की और उसकी शिकायत पार्लियामेंट स्ट्रीट थाने में ट्रांसफर कर दी।
डॉक्टर घवारी ने कोर्ट को बताया कि पुलिस अधिकारियों की ओर से कार्रवाई न करना उनकी ड्यूटी में लापरवाही के बराबर है।
कोर्ट ने उसकी अपील खारिज करते हुए कहा कि सेक्शन 175(3) बीएनएसएस के तहत एप्लीकेशन और उसके साथ लगे एफिडेविट को देखने से पता चलता है कि शिकायतकर्ता ने कहीं भी यह नहीं कहा है कि संबंधित एसएचओ के कार्रवाई न करने के बाद वह अपनी शिकायत लेकर डीसीपी के पास गई थी।
एसीजेएम नेहा मित्तल ने कहा कि धारा 175(3) बीएनएसएस के तहत आवेदन दाखिल करने के लिए यह जरूरी है कि शिकायतकर्ता शपथ पर न सिर्फ मामले के तथ्य बताए, बल्कि यह भी स्पष्ट करे कि उसने पुलिस से धारा 154(1) और 154(3) सीआरपीसी (या बीएनएसएस की धारा 173(4)) के तहत संपर्क किया था।
कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता को शपथ पर मामले के तथ्य बताने के साथ-साथ यह भी बताना होगा कि उसने पुलिस अधिकारियों से धारा 154(1), 154(3) सीआरपीसी या 173(4) बीएनएसएस के तहत मदद मांगी थी।
कोर्ट ने आगे कहा कि इस आवेदन में धारा 154(3) सीआरपीसी या 173(4) बीएनएसएस का पालन करने का कोई जिक्र नहीं है। न तो धारा 173(4) बीएनएसएस का पालन बताया गया है और न ही 3 सितंबर २०२५ (शपथ की तारीख) से पहले संबंधित डीसीपी को कोई शिकायत भेजी गई थी।