क्या केरल स्थानीय निकाय चुनावों में कांग्रेस और भाजपा ने माकपा को किया पीछे?
सारांश
Key Takeaways
- कांग्रेस और भाजपा ने बढ़त बनाई है।
- माकपा को पारंपरिक गढ़ों में नुकसान।
- राज्य के विभिन्न नगर निगमों में स्थिति चिंताजनक।
- ग्राम पंचायतों में यूडीएफ की मजबूत स्थिति।
- माकपा को हार के कारणों पर सोचने की आवश्यकता है।
तिरुवनंतपुरम, 13 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। केरल में स्थानीय निकाय चुनावों की मतगणना का आधा हिस्सा पार करते ही राज्य की राजनीति में एक बड़ा परिवर्तन देखने को मिल रहा है। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के नेतृत्व वाली माकपा (सीपीआई-एम) को इस बार बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है।
सत्तारूढ़ दल को अपने पारंपरिक गढ़ों में भी गंभीर झटके लगे हैं, वहीं कांग्रेस के नेतृत्व वाला संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (यूडीएफ) और भाजपा के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को स्पष्ट लाभ होता दिख रहा है।
राज्य की राजधानी तिरुवनंतपुरम नगर निगम से सबसे अधिक चौंकाने वाले रुझान सामने आए हैं। वर्षों से माकपा के नियंत्रण में रहे इस निगम में पार्टी, भाजपा से पीछे चल रही है। यह स्थिति माकपा के लिए गंभीर चेतावनी मानी जा रही है।
अन्य नगर निगमों में भी माकपा की स्थिति कमजोर होती नजर आ रही है। कोझिकोड, कोल्लम और अन्य प्रमुख नगर निगमों में पार्टी की हार की संभावनाएं जताई जा रही हैं, जो राजनीतिक विश्लेषकों के लिए अत्यंत चौंकाने वाली है। परंपरागत रूप से माकपा स्थानीय निकाय चुनावों में, खासकर पंचायत स्तर पर, कठिन परिस्थितियों में भी अपने किलों की रक्षा करने में सफल रही है, लेकिन इस बार यह परंपरा टूटती दिख रही है।
ग्राम पंचायतों में यूडीएफ 371 पंचायतों में आगे चल रहा है, जबकि वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) केवल 355 ग्राम पंचायतों में ही बढ़त बनाए हुए है। इससे यह स्पष्ट होता है कि ग्रामीण इलाकों में भी माकपा की पकड़ कमजोर हो रही है।
नगर निगमों की स्थिति माकपा के लिए और भी चिंताजनक है। राज्य के छह नगर निगमों में से चार में कांग्रेस आगे है, जबकि माकपा केवल एक निगम में बढ़त बनाए हुए है।
नगरपालिकाओं में भी यही रुझान नजर आ रहा है। कांग्रेस 51 नगरपालिकाओं में आगे है, जबकि एलडीएफ केवल 32 नगरपालिकाओं में ही बढ़त बनाए हुए हैं।
माकपा इन चुनावों में सामाजिक सुरक्षा पेंशन बढ़ाने जैसे कदमों की घोषणा के साथ उतरी थी। हालांकि, पहले के चुनावों के विपरीत, इस बार ये कल्याणकारी उपाय पार्टी के पक्ष में नहीं जाते दिखाई दे रहे हैं, जबकि माकपा लगातार दूसरी बार राज्य की सत्ता में है।
स्पष्ट होता जा रहा है कि माकपा नेतृत्व को इस हार के कारणों का गंभीरता से विश्लेषण करना होगा।