क्या पीएम मोदी देश के शीर्ष अर्थशास्त्रियों और विशेषज्ञों से बजट पर चर्चा करेंगे?
सारांश
Key Takeaways
- बजट 2026-27 के लिए आर्थिक सलाहकारों की बैठक महत्वपूर्ण है।
- प्रधान मंत्री मोदी विशेषज्ञों से सुझाव लेंगे।
- बजट में आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखा जाएगा।
- सीआईआई ने चार सुझाव दिए हैं।
- कर्ज को जीडीपी के 50% तक सीमित रखने का लक्ष्य है।
नई दिल्ली, 30 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। केंद्रीय बजट 2026-27 से पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को देश के प्रमुख अर्थशास्त्रियों और विशेषज्ञों से चर्चा करने वाले हैं। इस बैठक में वह बजट से संबंधित उनके विचार और सुझाव सुनेंगे।
यह बैठक सरकार की बजट से पूर्व की चर्चाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसमें अर्थशास्त्रियों के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ, नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी, नीति आयोग के सीईओ बी.वी.आर. सुब्रह्मण्यम और अन्य सदस्य भी शामिल हो सकते हैं।
इस बैठक का मुख्य उद्देश्य देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति पर विशेषज्ञों की राय प्राप्त करना है, ताकि सरकार सही आर्थिक निर्णय ले सके।
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आगामी 1 फरवरी को बजट पेश करने जा रही हैं। यह बजट ऐसे समय में आएगा जब वैश्विक स्तर पर भू-राजनीतिक तनाव और अमेरिका के टैरिफ जैसे मुद्दे मौजूद हैं।
बजट की तैयारी के लिए वित्त मंत्री पहले ही कई अर्थशास्त्रियों, ट्रेड यूनियनों और श्रमिक संगठनों से चर्चा कर चुकी हैं। ये बैठकें हर वर्ष बजट से पहले आयोजित की जाती हैं।
हाल के दिनों में सरकार ने बैंकिंग, होटल, आईटी और स्टार्टअप्स जैसे क्षेत्रों के प्रतिनिधियों से भी संवाद किया है। इसके अलावा कृषि, लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में विकास को बढ़ावा देने और रोजगार व आमदनी बढ़ाने पर भी चर्चा की गई है।
इसी बीच, देश के प्रमुख उद्योग संगठन सीआईआई (कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री) ने बजट 2026-27 के लिए चार मुख्य सुझाव दिए हैं। इनमें कर्ज को नियंत्रित रखना, सरकारी खर्च में पारदर्शिता, अधिक राजस्व जुटाना और खर्च को सही तरीके से करना शामिल है।
सीआईआई के अनुसार, सरकार का लक्ष्य है कि वित्त वर्ष 2031 तक देश का कर्ज जीडीपी के करीब 50 प्रतिशत तक रखा जाए।
संगठन का कहना है कि यदि वित्त वर्ष 2027 में केंद्र सरकार का कर्ज जीडीपी का करीब 54.5 प्रतिशत और घाटा 4.2 प्रतिशत के आसपास रखा जाए, तो इससे अर्थव्यवस्था का विश्वास बना रहेगा और विकास को भी सहारा मिलेगा।