क्या गुलशन बावरा ने हिंदी सिनेमा को अमर गीतों का खजाना दिया?

सारांश
Key Takeaways
- गुलशन बावरा का योगदान हिंदी सिनेमा में महत्वपूर्ण है।
- उनके गीतों में भावनाओं और राष्ट्रीय गौरव की गहराई है।
- उन्होंने २३७ गाने लिखे, जिसमें से कई अमर हो गए।
- उनकी रचनाएं हर पीढ़ी में राष्ट्र भावना को जागृत करती हैं।
- गुलशन बावरा का जीवन संघर्ष और जुनून से भरा रहा।
नई दिल्ली, 6 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। गुलशन बावरा हिन्दी सिनेमा के एक प्रसिद्ध गीतकार रहे हैं। उन्होंने हिंदी सिनेमा को कम लेकिन अमर गीतों का खजाना प्रदान किया। उनके लिखे गीत केवल संगीतमय रचनाएं नहीं हैं, बल्कि भावनाओं और राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक भी माने जाते हैं। उनकी सादगी और गहराई से भरे शब्द आज भी राष्ट्रीय पर्वों पर गूंजते हैं और हर दिल को छू लेते हैं। उनके रचनाएं समय की सीमाओं को पार कर हर पीढ़ी में राष्ट्र भावना की अलख जगा रही हैं।
गुलशन बावरा से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा है कि वह केवल गीतकार तक सीमित नहीं थे, उनके दौर में मशहूर गायक मोहम्मद रफी के साथ उनकी दोस्ती भी अद्भुत थी।
फिल्म 'जंजीर' के गाने ‘दीवाने हैं दीवानों को’ की रिकॉर्डिंग से जुड़ा एक मजेदार किस्सा है। मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर की आवाज में यह गीत पहले ही रिकॉर्ड हो चुका था। लेकिन, लता मंगेशकर को लगा कि उनके हिस्से में एक छोटी-सी गलती रह गई थी और वह एक और टेक चाहती थीं। जब मोहम्मद रफी स्टूडियो से अपनी गाड़ी में बैठकर जा रहे थे, गुलशन बावरा ने मजाक में कहा कि यह गाना स्क्रीन पर मैं खुद गा रहा हूं। इस बात ने रफी साहब को इतना प्रेरित किया कि वह रमजान के रोजे के बावजूद दोबारा टेक देने के लिए लौट आए।
गुलशन बावरा ने अपने करियर में “मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती, मेरे देश की धरती” जैसे देशभक्ति गीत भी लिखे। उनके दिल के बेहद करीब एक गीत था, उसके बोल थे, “चांदी की दीवार न तोड़ी, प्यार भरा दिल तोड़ दिया। एक धनवान की बेटी ने निर्धन का दामन छोड़ दिया।”
गुलशन बावरा का जन्म १२ अप्रैल १९३७ को पाकिस्तान के शेखुपुर में हुआ था। १९४७ में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद उनका परिवार भारत आ गया। मुंबई में बसने के बाद, गुलशन ने वेस्टर्न रेलवे में क्लर्क की नौकरी की, जो उनकी आजीविका का साधन थी। लेकिन, उनका असली जुनून संगीत और गीत लेखन में था। मुंबई, उस समय हिंदी सिनेमा का गढ़, उनके सपनों का शहर बन गया।
१९५५ में मुंबई आने के बाद, गुलशन ने फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष किया। उन्हें पहला मौका २३ अगस्त १९५८ को मिला, जब संगीतकार जोड़ी कल्याण-आनंद ने उन्हें फिल्म 'चंद्रसेना' के लिए गीत लिखने का अवसर दिया। यह उनके करियर का पहला कदम साबित हुआ।
फिल्म 'सट्टा बाजार' के दौरान, उनके दो गीतों को सुनकर डिस्ट्रीब्यूटर शांति भाई पटेल ने उन्हें गुलशन बावरा का नाम दिया। उनके करियर में कुल २३७ गाने मार्केट में आए। उन्होंने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, अनु मलिक के साथ भी काम किया, और उनकी गहरी दोस्ती आरडी बर्मन के साथ थी।
७ अगस्त २००९ को इस फनकार ने दुनिया से अलविदा ले लिया।