क्या जगन्नाथ पुरी मंदिर की रसोई में है छुपा कोई रहस्य?
सारांश
Key Takeaways
- जगन्नाथ मंदिर की रसोई में लाखों लोगों के लिए महाप्रसाद तैयार होता है।
- रसोई का खाना केवल शरीर ही नहीं, आत्मा को भी पोषण देता है।
- यहां का खाना जूठा नहीं माना जाता, सभी के लिए समानता है।
- रसोई में अद्भुत खाना पकाने की प्रक्रिया है।
पुरी, 5 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। ओडिशा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह श्रद्धा, भक्ति और रहस्यों का अद्भुत मिश्रण है। इसे भारत के चार धामों में से एक माना जाता है और यहां हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर की भव्यता, इसकी परंपराएं और यहां के चमत्कार लोगों को हमेशा हैरान कर देते हैं।
जगन्नाथ मंदिर की सबसे खास बात है इसके भोग और रसोईघर। पुरी की रसोई दुनिया की सबसे बड़ी रसोइयों में से एक मानी जाती है। यहां हर रोज भगवान जगन्नाथ के भोग के रूप में अनेकों पकवान बनाए जाते हैं। यह कोई मामूली रसोई नहीं है, बल्कि इसमें रोज लाखों लोग भोजन कर सकते हैं और कभी भी किसी के लिए खाना कम नहीं पड़ता।
मंदिर की रसोई में खाना बनाने का तरीका भी बड़ा अद्भुत है। यहां सात मिट्टी के बर्तन एक के ऊपर एक रखकर खाना पकाया जाता है। लेकिन, सबसे बड़ी बात यह है कि सबसे ऊपर रखा हुआ बर्तन सबसे पहले पकता है, उसके नीचे वाला बर्तन उसके बाद पकता है, और अंत में सबसे नीचे रखा बर्तन पकता है। यह देखकर हर कोई हैरान रह जाता है। भक्त इसे भगवान की दिव्य शक्ति का चमत्कार मानते हैं।
मंदिर का यह रसोईघर न केवल खाना बनाने के लिए है बल्कि भक्ति और सेवा का प्रतीक भी है। यहां के कर्मचारी और पुजारी पूरी श्रद्धा और संयम के साथ खाना बनाते हैं। कहते हैं कि यहां का खाना केवल शरीर ही नहीं, बल्कि आत्मा को भी पोषण देता है।
जगन्नाथ पुरी का एक और नियम है कि यहां यदि कोई व्यक्ति प्रसाद ग्रहण कर रहा हो और किसी दूसरे व्यक्ति को पत्तल या जगह न मिल रही हो तो वो भी उसी पत्तल में खाने लगता है। यहां के महाप्रसाद को जूठा नहीं माना जाता है। यहां तक कि अगर प्रसाद ग्रहण करते समय कोई कुत्ता या बिल्ली भी आ जाए तो उसे भी भगाया नहीं जाता, वो भी उसी पत्तल में प्रसाद ग्रहण करता है।