क्या जम्मू-कश्मीर में एमएमयू ने 'वंदे मातरम' गायन प्रतियोगिता पर आपत्ति उठाई?

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क्या जम्मू-कश्मीर में एमएमयू ने 'वंदे मातरम' गायन प्रतियोगिता पर आपत्ति उठाई?

सारांश

जम्मू-कश्मीर में 'वंदे मातरम' गायन प्रतियोगिता को लेकर एमएमयू ने उठाई आपत्ति। जानें इस विवाद की पृष्ठभूमि और इसके पीछे की धार्मिक संवेदनाएं। क्या यह विवाद सांस्कृतिक सहिष्णुता को प्रभावित करेगा?

Key Takeaways

  • एमएमयू का कहना है कि धार्मिक अभिव्यक्तियों पर सख्त नियंत्रण है।
  • सांस्कृतिक विविधता का सम्मान जरूरी है।
  • कश्मीर में धार्मिक संवेदनाएं महत्वपूर्ण हैं।
  • सार्वजनिक संचार में संवेदनशीलता की आवश्यकता है।
  • 150 वर्ष के उत्सव में सभी को शामिल होने का मौका है।

श्रीनगर, 31 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। जम्मू-कश्मीर में 'वंदे मातरम' के 150 वर्ष पूरे होने के उत्सव के दौरान एक नया विवाद उत्पन्न हुआ है। मुत्तहिदा मजलिस-ए-उलेमा (एमएमयू), जो क्षेत्र के प्रमुख इस्लामी संगठनों का समूह है, ने कुछ सरकारी विभागों द्वारा 'वंदे मातरम' थीम के तहत गायन प्रतियोगिता की प्रचार सामग्री के प्रसार और स्थानीय समाचार पत्रों में इसके प्रकाशन पर कड़ी आपत्ति व्यक्त की है।

एमएमयू के आधिकारिक 'एक्स' हैंडल 'मीरवाइज मंजिल-मीरवाइज-ए-कश्मीर' से जारी बयान में कहा गया है कि गैर-इस्लामी मान्यताओं से संबंधित धार्मिक अर्थ वाली अभिव्यक्तियों और राष्ट्रगान इस्लामी एकेश्वरवाद (तौहीद) का पालन करने वालों के लिए गंभीर शरिया चिंताओं को जन्म देती हैं। इस्लाम धार्मिक अभिव्यक्तियों को सख्ती से नियंत्रित करता है और ऐसी गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति नहीं देता जो किसी सृजित वस्तु को पवित्र या पूजनीय बनाने का संकेत देती हैं।

एमएमयू ने इस्लामी शिक्षाओं से जुड़े धार्मिक भावनाओं वाले सभी व्यक्तियों को सलाह दी है कि वे ऐसे आयोजनों में भाग लेने से बचें। उन्होंने स्थानीय समाचार पत्रों पर भी चिंता व्यक्त की कि उन्होंने जम्मू-कश्मीर की धार्मिक पहचान और आस्था की सीमाओं का सम्मान किए बिना ऐसी प्रचार सामग्री को प्रकाशित और बढ़ावा दिया। कश्मीर अपने धार्मिक संवेदनाओं का सम्मान करने के लिए जाना जाता है।

एमएमयू ने इस बात को दोहराया कि सामाजिक सद्भाव और सह-अस्तित्व के लिए धार्मिक विश्वासों का सम्मान आवश्यक है। संगठन ने सभी संबंधित संस्थानों, सरकारी विभागों और मीडिया से अपील की है कि वे सार्वजनिक संचार में अधिक सांस्कृतिक और धार्मिक संवेदनशीलता का पालन करें।

यह आपत्ति तब आई है जब केंद्र सरकार के निर्देश पर 'वंदे मातरम' के 150 वर्ष (1875 में बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा रचित) के उत्सव के तहत देश भर में कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में संस्कृति विभाग ने स्कूलों, कॉलेजों और सार्वजनिक स्थलों पर सामूहिक गायन, सांस्कृतिक कार्यक्रम, निबंध-क्विज प्रतियोगिताएं आदि आयोजित करने के लिए निर्देश दिए थे। यह अभियान नवंबर 2025 से शुरू होगा और गणतंत्र दिवस 2026 तक विभिन्न चरणों में जारी रहेगा।

Point of View

यह देखना महत्वपूर्ण है कि हम सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक सहिष्णुता को कैसे बनाए रखते हैं।
NationPress
31/12/2025

Frequently Asked Questions

एमएमयू ने 'वंदे मातरम' पर आपत्ति क्यों जताई?
एमएमयू का कहना है कि 'वंदे मातरम' से जुड़े धार्मिक अर्थ इस्लामी मान्यताओं के खिलाफ हैं, इसलिए उन्हें ऐसे कार्यक्रमों में भाग लेने से रोका गया है।
'वंदे मातरम' का उत्सव कब मनाया जा रहा है?
'वंदे मातरम' का उत्सव 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में मनाया जा रहा है, जो 1875 में बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा रचित किया गया था।
क्या इस विवाद का असर सांस्कृतिक सहिष्णुता पर पड़ेगा?
यह विवाद सांस्कृतिक सहिष्णुता पर प्रश्न उठाता है, क्योंकि इससे विभिन्न धार्मिक मान्यताओं के बीच संवाद और समझ की आवश्यकता बढ़ जाती है।
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