क्या जम्मू कश्मीर में तापमान में गिरावट जारी है?
सारांश
Key Takeaways
- जम्मू-कश्मीर में तापमान में गिरावट जारी है।
- मौसम विभाग के अनुसार, अधिकतम तापमान और न्यूनतम तापमान में कमी आई है।
- आगामी दिनों में चिल्लई कलां का आगमन होने वाला है।
- सर्दियों के मौसम से जल स्तर में कमी आई है।
- बर्फबारी के बिना गर्मियों में सूखा पड़ सकता है।
श्रीनगर, 14 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। जम्मू-कश्मीर में मौसम में तेजी से बदलाव हो रहा है और जैसे-जैसे दिन ढलता है, तापमान भी तेजी से गिरता जा रहा है। कई क्षेत्रों में सर्द हवाओं का प्रभाव बना हुआ है।
रविवार को जम्मू-कश्मीर में रातभर बादल रहने के बाद न्यूनतम तापमान में गिरावट देखी गई, जिससे पूरे कश्मीर घाटी का तापमान फ्रीजिंग पॉइंट से ऊपर चला गया, जबकि अधिकतम तापमान में भी कमी आई।
मौसम विभाग के अधिकारियों के अनुसार, रातभर बादल रहने के कारण घाटी में न्यूनतम तापमान फ्रीजिंग पॉइंट से ऊपर चला गया। पहलगाम में न्यूनतम तापमान 2.4 डिग्री सेल्सियस, श्रीनगर में 2 डिग्री सेल्सियस, और गुलमर्ग में 1.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। कल श्रीनगर में अधिकतम तापमान 7.7 डिग्री, गुलमर्ग में 7.2 डिग्री, और पहलगाम में 9 डिग्री था।
मौसम विभाग ने बताया कि जम्मू शहर में न्यूनतम तापमान 11.4 डिग्री, कटरा में 11.2 डिग्री, बटोत में 7.9 डिग्री, बनिहाल में 5.5 डिग्री, और भद्रवाह में 4.7 डिग्री रहा।
आने वाले दिनों में श्रीनगर और अन्य घाटी क्षेत्रों में धुंध और बादल छाए रहने की संभावना है। मैदानी इलाकों में तापमान में गिरावट के बावजूद बर्फबारी की संभावना कम है, लेकिन कुछ ऊंचाई वाले क्षेत्रों में हल्की बर्फबारी हो सकती है। जम्मू कश्मीर में आगामी 10 दिनों में मौसम में कोई महत्वपूर्ण बदलाव होने की उम्मीद नहीं है। मौसम स्थिर रहेगा और बर्फबारी की संभावना कम है।
सर्दियों के मौसम के कारण कश्मीर में नदियों, झरनों, झीलों, और कुओं का जल स्तर घट गया है। पानी की ऊपरी सतह पर हल्का जमाव भी देखा गया है। जल्द ही पहाड़ी क्षेत्रों में ‘चिल्लई कलां’ शुरू होने जा रहा है, जिसमें 40 दिनों तक कड़ाके की ठंड रहती है और पानी भी जम जाता है।
‘चिल्लई कलां’ 21 दिसंबर से शुरू होकर 30 जनवरी तक चलेगा। इस मौसम में पहाड़ी क्षेत्रों के निवासी विशेष तैयारी करते हैं और आवश्यक वस्तुओं को पहले से इकट्ठा कर लेते हैं। चिल्लई कलां के दौरान बर्फबारी होना आवश्यक है, क्योंकि इसके बिना घाटी के सभी झीलें पानी से भर नहीं पाती हैं और गर्मियों में सूखा पड़ सकता है। यह प्रकृति और घाटी के लोगों की परंपरा का अनूठा संगम है।