क्या जामसांवली मंदिर में हनुमान की नाभि से निकलने वाला जल पीने से भूत-प्रेत की बाधा खत्म होती है?
सारांश
Key Takeaways
- जामसांवली हनुमान मंदिर में हनुमान जी की नाभि से जल निकलता है।
- भक्तों का मानना है कि यह जल भूत-प्रेतों से मुक्ति दिलाता है।
- यहां आने वाले भक्तों को सवा महीने का परहेज करना होता है।
- मंदिर कुंडली दोषों से मुक्ति के लिए भी प्रसिद्ध है।
- यहां की पूजा में विशेष परंपराएँ हैं।
नई दिल्ली, २४ अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत में भगवान हनुमान के अनेक प्रसिद्ध मंदिर हैं, जो अपनी विशेष मान्यताओं के लिए जाने जाते हैं। कुछ स्थानों पर बालाजी सरकार के रूप में हनुमान जी बाधाओं को समाप्त करते हैं, वहीं भक्त भूत-प्रेतों से मुक्ति पाने के लिए दूर-दूर से आते हैं।
मध्यप्रदेश में भी भगवान हनुमान का एक प्राचीन मंदिर है, जहां उनकी नाभि से रहस्यमय जल निकलता है। इस जल को ग्रहण करने के लिए भक्तों की लम्बी कतारें लगती हैं।
मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में स्थित जामसांवली हनुमान मंदिर नागपुर-छिंदवाड़ा रोड पर है, जो जाम नदी और सर्पा नदी के नजदीक है। ऐसा कहा जाता है कि जब हनुमान जी ने लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी लाने के दौरान इस जगह पर कुछ देर विश्राम किया था।
इस कारण इस मंदिर में भगवान हनुमान की प्रतिमा विश्राम मुद्रा में है। मंदिर के पीपल के पेड़ के नीचे हनुमान जी की विशाल मूर्ति है, जिसकी नाभि से जल निकलता है। भक्तों का मानना है कि जो इस जल का सेवन करता है, उसे रोगों और भूत-प्रेतों से मुक्ति मिलती है। भक्त अपने परिवार के स्वास्थ्य के लिए इस जल को लेकर आते हैं।
प्रतिमा से निकलने वाला जल कहाँ से आता है, यह कोई नहीं जानता। मान्यता है कि यदि किसी पर नकारात्मक ऊर्जा है, तो उसे इस मंदिर में आने की सलाह दी जाती है। ऐसा होने पर, नाभि से निकलने वाला जल पीकर नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए दर्शन के बाद सवा महीने का परहेज करना आवश्यक है, जिसमें लहसुन, प्याज, मदिरा और बुरे आचरणों से दूर रहना होता है।
जामसांवली मंदिर को दोषों से मुक्ति के लिए भी जाना जाता है। कहा जाता है कि यदि कुंडली में शनि या मंगल दोष है, तो यहाँ आकर पूजा करने से इनसे मुक्ति मिलती है।
मंगल दोष से मुक्ति पाने के लिए आसाढ़ के पहले मंगलवार को हनुमान जी को लाल चोला या लंगोटा चढ़ाने की परंपरा है। भक्तों में यह किंवदंती है कि पहले हनुमान जी की प्रतिमा खड़ी थी, लेकिन कुछ डाकुओं ने पीपल के पेड़ के नीचे से खजाना चुराने का प्रयास किया, जिससे मूर्ति वर्तमान स्थिति में आ गई। पीपल के पेड़ के नीचे खजाना होने के कोई प्रमाण नहीं हैं।