क्या झारखंड को पहली महिला पुलिस प्रमुख मिली? डीजीपी तदाशा मिश्रा ने पदभार संभाला
सारांश
Key Takeaways
- तदाशा मिश्रा झारखंड की पहली महिला डीजीपी बनीं।
- उन्होंने पुलिसिंग को बेहतर बनाने का संकल्प लिया।
- आम नागरिकों के साथ सम्मान से पेश आने की अपील की।
- अनुराग गुप्ता की सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने पदभार संभाला।
- जांच की गुणवत्ता में सुधार पर ध्यान केंद्रित करने का वादा किया।
रांची, 7 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। तदाशा मिश्रा, जो 1994 बैच की आईपीएस अधिकारी हैं, ने शुक्रवार को झारखंड की प्रभारी डीजीपी के रूप में पदभार ग्रहण किया। यह झारखंड के 25 वर्षों के इतिहास में पहली बार है जब किसी महिला अधिकारी ने राज्य के पुलिस प्रमुख की जिम्मेदारी संभाली है। उन्होंने पुलिस मुख्यालय पहुंचकर अपना कार्यभार ग्रहण किया और उसके बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के कांके स्थित आवासीय कार्यालय में उनसे शिष्टाचार भेंट की।
इससे पहले, तदाशा मिश्रा राज्य के गृह, कारा एवं आपदा प्रबंधन विभाग में विशेष सचिव के पद पर कार्यरत थीं। वे ओडिशा की मूल निवासी हैं और झारखंड पुलिस में एडीजी, आईजी, गिरिडीह और बोकारो की एसपी, रांची की सिटी एसपी जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुकी हैं।
प्रभारी डीजीपी बनने के बाद, तदाशा मिश्रा ने मीडिया से बात करते हुए अपनी प्राथमिकताएं स्पष्ट कीं। उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार के पुलिसिंग विजन को वास्तविकता में बदलने के लिए वे काम करेंगी। मिश्रा ने जोर दिया कि पुलिस कार्रवाई का परिणाम बेहतर अनुसंधान से निकलता है, इसलिए जांच की गुणवत्ता में सुधार पर ध्यान दिया जाएगा।
उन्होंने कहा कि अभियोजन प्रणाली को अधिक प्रभावी और त्वरित बनाने की आवश्यकता है, ताकि अपराधियों को जल्द सजा मिल सके। उन्होंने निचले स्तर के पुलिसकर्मियों से अपील की कि वे आम नागरिकों के साथ शालीनता और सम्मान से पेश आएं।
ज्ञात हो कि पूर्व डीजीपी अनुराग गुप्ता ने अपनी ऐच्छिक सेवानिवृत्ति का आवेदन दिया था, जिसे सरकार ने स्वीकार कर लिया और उन्हें 6 नवंबर को रिटायर कर दिया। 1990 बैच के आईपीएस अधिकारी अनुराग गुप्ता जुलाई 2024 से प्रभारी डीजीपी के रूप में कार्यरत थे। विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने उन्हें पद से हटाया था, लेकिन चुनाव प्रक्रिया पूरी होने पर नवंबर 2024 में फिर बहाल किया गया था।
राज्य सरकार ने फरवरी 2025 में डीजीपी नियुक्ति के लिए नई नियमावली लागू की थी, जिसके तहत गुप्ता को दो वर्ष के लिए नियमित डीजीपी बनाया गया था। हालांकि, इस पर केंद्र सरकार और यूपीएससी ने आपत्ति जताई थी। सितंबर में उनसे एसीबी डीजी का प्रभार हटाए जाने के बाद उनके पद से हटने की अटकलें तेज थीं।