क्या झारखंड में पेसा कानून लागू करने की मांग को लेकर आदिवासी संगठनों का राजभवन मार्च सफल होगा?

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क्या झारखंड में पेसा कानून लागू करने की मांग को लेकर आदिवासी संगठनों का राजभवन मार्च सफल होगा?

सारांश

झारखंड में पेसा कानून लागू करने की मांग को लेकर आदिवासी संगठनों का राजभवन मार्च हुआ। प्रदर्शनकारियों ने राज्यपाल से कानून लागू करने की गुहार लगाई। क्या यह आंदोलन राज्य में बदलाव लाएगा?

Key Takeaways

  • आदिवासी संगठनों का मार्च झारखंड के लिए महत्वपूर्ण है।
  • पेसा कानून आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा का माध्यम है।
  • राज्यपाल से कानून लागू करने की मांग की गई।
  • आंदोलन से राजनीतिक दबाव बढ़ सकता है।
  • आदिवासी संस्कृति और अधिकारों की सुरक्षा आवश्यक है।

रांची, 14 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। झारखंड में पेसा (पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल एरिया) एक्ट को लागू करने की मांग को लेकर कई आदिवासी संगठनों ने सोमवार को रांची में राजभवन की ओर मार्च किया।

गुमला से पदयात्रा के बाद रांची पहुंचे प्रदर्शनकारियों ने राजभवन के बाहर जोरदार प्रदर्शन किया और राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा। इस मौके पर केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष बबलू मुंडा ने कहा कि झारखंड में आदिवासी मुख्यमंत्री होने के बावजूद सरकार आदिवासियों की मांगों की अनदेखी कर रही है।

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि वर्तमान सरकार के कार्यकाल में आदिवासियों का शोषण और जल-जंगल-जमीन पर कब्जा बढ़ता जा रहा है। बबलू मुंडा ने कहा, “हम गुमला से 120 किमी पैदल चलकर यहां आए हैं ताकि पेसा कानून लागू हो सके। हमारी मांग है कि राज्यपाल इस कानून को लागू करने के लिए ठोस कदम उठाएं, ताकि आदिवासी संस्कृति, धर्म और अधिकार सुरक्षित रह सकें।”

प्रदर्शन में शामिल सामाजिक कार्यकर्ता निशा भगत ने कहा कि झारखंड पांचवी अनुसूची वाला राज्य है और पेसा कानून लागू करने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। उन्होंने कहा, “यह कानून 1996 में पारित हुआ था, लेकिन 25 साल बाद भी इसे लागू नहीं किया गया है। धर्मांतरण के कारण आदिवासियों के अधिकारों में अड़चनें आ रही हैं। यदि सरकार ने हमारी मांगों पर ध्यान नहीं दिया, तो आदिवासी समाज को गंभीर कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।”

वहीं, प्रदेश के नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने राज्य सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि सरकार पेसा कानून लागू करने में गंभीरता नहीं दिखा रही है।

उन्होंने कहा, “अगर यह कानून लागू हो जाता है तो ग्राम सभा को अधिकार मिलेंगे, जिससे जमीन की सुरक्षा हो सकेगी और ग्राम सभा तय करेगी कि किसे जमीन मिलेगी। इससे बांग्लादेशी घुसपैठ और अवैध कब्जों पर रोक लगेगी। लेकिन, सरकार जानती है कि इससे उनके वोट बैंक पर असर पड़ेगा, इसलिए यह कानून लागू नहीं किया जा रहा।”

आदिवासी संगठनों ने चेतावनी दी है कि अगर जल्द ही पेसा कानून लागू नहीं हुआ, तो वे पूरे राज्य में आंदोलन को और तेज करेंगे।

Point of View

यह स्पष्ट है कि झारखंड में आदिवासी समुदाय की आवाज़ को सुनना आवश्यक है। पेसा कानून का कार्यान्वयन न केवल उनके अधिकारों की सुरक्षा करेगा, बल्कि समाज में समरसता भी लाएगा। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी समुदायों की आवाज़ को सुनने का अवसर मिले।
NationPress
23/07/2025

Frequently Asked Questions

पेसा कानून क्या है?
पेसा (पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल एरिया) कानून आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए बनाया गया है।
यह कानून लागू क्यों नहीं हो रहा?
सरकार की अनदेखी और राजनीतिक कारणों के चलते पेसा कानून का कार्यान्वयन नहीं हो पा रहा है।
आदिवासी संगठनों का अगला कदम क्या होगा?
यदि पेसा कानून जल्द लागू नहीं हुआ, तो आदिवासी संगठन पूरे राज्य में आंदोलन तेज करने की योजना बना रहे हैं।