महादेव ने पार्वती संग काशी में क्यों बसने का निर्णय लिया?
सारांश
Key Takeaways
- काशी को मोक्ष नगरी माना जाता है।
- महादेव और पार्वती का विवाह पौराणिक कथा का हिस्सा है।
- काशी विश्वनाथ मंदिर का महत्व धार्मिक अनुष्ठानों में है।
- यहां जीवन और मृत्यु का अनोखा संगम देखने को मिलता है।
- जो व्यक्ति काशी में प्राण त्यागता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
वाराणसी, 5 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। हिंदू धर्म में काशी को केवल एक शहर नहीं, बल्कि आस्था, भावना और मोक्ष का द्वार माना जाता है। कहा जाता है कि यह नगर उतना प्राचीन है जितना कि समय। इसलिए इसे आनंदवन और मोक्ष नगरी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, काशी भगवान शिव का प्रिय धाम है। यहां आज भी महादेव माता पार्वती के साथ विराजमान हैं।
कथा के अनुसार, जब भगवान शिव ने माता पार्वती के साथ विवाह किया, तब वे उन्हें कैलाश पर्वत पर ले गए। प्रारंभ में सब कुछ ठीक था, लेकिन बाद में पार्वती जी ने महसूस किया कि विवाह के बाद भी वे अपने पिता के घर में ही हैं। एक दिन उन्होंने भोलेनाथ से कहा कि हर महिला विवाह के बाद अपने पति के घर जाती है, लेकिन मैं तो अभी भी अपने पिता के घर में रह रही हूं।
माता पार्वती की यह बात सुनकर भगवान शिव उन्हें लेकर पृथ्वी पर आए और गंगा तट पर स्थित उस दिव्य स्थान काशी को अपना निवास बनाया।
काशी में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर में स्वयं महादेव विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हैं। यह मंदिर न केवल श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है, बल्कि सनातन संस्कृति और अध्यात्म का अद्भुत संगम भी है। मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से भगवान विश्वनाथ के दर्शन करते हैं, वे अपने सभी पापों से मुक्त हो जाते हैं और उनके जीवन में शांति एवं समृद्धि आती है।
कहा जाता है कि जो व्यक्ति प्रतिदिन भगवान विश्वनाथ की आराधना करता है, उसकी जीवन यात्रा की सारी जिम्मेदारी स्वयं महादेव अपने ऊपर ले लेते हैं। भक्त के दुख, संकट और कष्ट मिटाकर शिव उन्हें मोक्ष का मार्ग प्रदान करते हैं। यही कारण है कि काशी को मोक्ष नगरी भी कहा जाता है।
काशी की गलियों, घाटों और मंदिरों में जीवन और मृत्यु का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। लोग अपने जीवन के अंतिम क्षण काशी में बिताने आते हैं। ऐसा विश्वास है कि जो व्यक्ति काशी में अपने प्राण त्यागता है, उसे मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।