क्या आप जानते हैं उच्छिष्ट गणपति मंदिर के बारे में: तमिलनाडु का अद्वितीय मंदिर जहां भगवान गणेश अघोरी रूप में हैं?
सारांश
Key Takeaways
- उच्छिष्ट गणपति मंदिर में भगवान गणेश का अघोरी रूप है।
- यह मंदिर एशिया का सबसे बड़ा उच्छिष्ट गणपति मंदिर है।
- दंपत्तियों को संतान प्राप्ति में मदद करने के लिए यहां पूजा की जाती है।
- भगवान गणेश और नील सरस्वती का आलिंगन मुद्रा में दर्शन होता है।
- उच्छिष्ट गणपति का अर्थ बचा हुआ भोजन है।
नई दिल्ली, 5 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। भगवान गणेश की पूजा देशभर में अनेक मंदिरों में सात्विक रूप में की जाती है, परंतु क्या आपने भगवान गणेश के अघोरी रूप के बारे में सुना है? तमिलनाडु में स्थित उच्छिष्ट गणपति मंदिर में भगवान गणेश अपनी पत्नी के साथ अघोरी और आलिंगन की मुद्रा में विराजमान हैं।
उच्छिष्ट गणपति मंदिर तिरुनेलवेली जिले के मेहलिंगपुरम के नजदीक है। यह मंदिर विशाल परिसर में फैला हुआ है, जिसमें राजगोपुरम पांच मंजिला और भव्य है। इस पर देवी-देवताओं की सुंदर नक्काशी है, जिसे रंग-बिरंगे पेंट से सजाया गया है।
यह मंदिर एशिया का सबसे बड़ा उच्छिष्ट गणपति मंदिर है और अपने नाम के अनुरूप अन्य मंदिरों से भिन्न है। यहां भगवान गणेश अघोरी रूप में अपनी पत्नी (नील सरस्वती) के संग विराजमान हैं।
मंदिर के गर्भगृह में भगवान गणेश अपनी पत्नी के साथ आलिंगन की मुद्रा में हैं। उनकी सूंड उनकी पत्नी की नाभि पर रखी गई है। यह भगवान गणेश की पहली प्रतिमा है, जिसमें वे अपनी पत्नी के साथ इस विशेष मुद्रा में हैं। कहा जाता है कि एक राक्षस का वध करने के लिए भगवान गणेश ने अघोरी रूप धारण किया था।
उच्छिष्ट गणपति मंदिर की इस प्रतिमा के दर्शन से दंपत्तियों को गुणी संतान की प्राप्ति होती है। जिन दंपत्तियों को संतान प्राप्ति में कठिनाई होती है, उन्हें भी इस मंदिर के दर्शन अवश्य करने चाहिए। मनोकामना पूरी होने पर भक्त यहां आकर भगवान गणेश और नील सरस्वती का अभिषेक करते हैं और यंत्र, मंत्र जाप तथा आरती से भगवान का धन्यवाद करते हैं।
उच्छिष्ट गणपति भगवान गणेश का एक तांत्रिक रूप है, जिनकी पूजा तांत्रिक अपनी सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए करते हैं। यहां 'उच्छिष्ट' का अर्थ है बचा हुआ आखिरी भोजन। यह रूप गणपति के 32 रूपों में से एक है, जिसे अन्य देवी-देवताओं से भिन्न पूजा विधि के तहत पूजा जाता है।