क्या कजरी तीज का पर्व शिव-पार्वती के पुनर्मिलन से जुड़ा है?

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क्या कजरी तीज का पर्व शिव-पार्वती के पुनर्मिलन से जुड़ा है?

सारांश

कजरी तीज का पर्व 12 अगस्त को मनाया जाएगा, जब महिलाएं भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करती हैं। यह पर्व दांपत्य सुख का प्रतीक है और इसे स्त्री के तप और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। जानें इस पर्व की पौराणिक कहानियाँ और पूजा विधियाँ।

Key Takeaways

  • कजरी तीज का पर्व भगवान शिव और देवी पार्वती के पुनर्मिलन का प्रतीक है।
  • महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत रखकर पूजा करती हैं।
  • यह पर्व दांपत्य सुख और स्त्री के समर्पण का प्रतीक है।
  • नीम की पूजा को शुद्धता और औषधीय गुणों का प्रतीक माना जाता है।
  • सुहागिन महिलाएं इस दिन विशेष श्रृंगार करती हैं।

नई दिल्ली, 11 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। 12 अगस्त को कजरी तीज का पर्व मनाया जाने वाला है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखकर भगवान शिव-पार्वती की पूजा करती हैं। इस पर्व की जड़ें पौराणिक इतिहास में हैं, जो इसे एक विशेष आध्यात्मिक पहचान प्रदान करता है।

कजरी तीज का ऐतिहासिक महत्व हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथों स्कंद पुराण और शिव महापुराण में वर्णित है।

कथाओं के अनुसार, देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने हेतु कठोर तप किया था। इस तप का फल उन्हें 108 जन्मों के बाद मिला, जब भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया। इसीलिए, इस दिन को दांपत्य सुख का प्रतीक माना जाता है।

यह व्रत खासतौर पर महिलाओं द्वारा रखा जाता है, जो न केवल अपने पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं, बल्कि अविवाहित कन्याएं भी अच्छे वर की कामना से उपवास करती हैं। इसे स्त्री के तप, धैर्य और समर्पण की संपूर्ण अभिव्यक्ति माना गया है।

इस दिन सुहागिन महिलाएं विशेष रूप से हरी साड़ी, हरी चूड़ियां, सिंदूर, बिंदी और मेहंदी आदि सोलह श्रृंगार करती हैं और रात में चंद्रमा को अर्घ्य देकर सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं।

कजरी तीज पर नीम की पूजा, जिसे 'नीमड़ी पूजन' कहा जाता है, विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, नीम की छाया को शुद्धता, औषधीय गुण और स्त्री ऊर्जा का प्रतीक माना गया है। महिलाएं नीम की डाली को देवी का स्वरूप मानकर उसकी पूजा करती हैं। कई स्थानों पर नीम की पत्तियों पर मिट्टी से बनी देवी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है। महिलाएं इस पूजा में हल्दी, सिंदूर, चूड़ी, बिंदी और सोलह श्रृंगार की वस्तुएं अर्पित करती हैं।

कहा जाता है कि नीम में देवी दुर्गा का वास होता है और इसका पूजन करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है। नीम की शीतलता और औषधीय गुण शरीर और मन दोनों को शुद्ध करने में सहायक होते हैं।

जानकारी के अनुसार, कजरी तीज की तिथि सोमवार10:33 बजे प्रारंभ होगी और 12 अगस्त को सुबह 8:40 बजे समाप्त होगी। चूंकि तृतीया तिथि 12 अगस्त को सूर्योदय के समय तक रहेगी, इसलिए उदयातिथि के अनुसार कजरी तीज का पर्व इसी दिन मनाया जाएगा।

Point of View

बल्कि यह महिलाओं की शक्ति और समर्पण का भी प्रतीक है। यह पर्व समाज में दांपत्य सुख और स्त्री के प्रति सम्मान को बढ़ावा देता है।
NationPress
23/08/2025

Frequently Asked Questions

कजरी तीज कब मनाया जाता है?
कजरी तीज का पर्व हर वर्ष भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है।
कजरी तीज का महत्व क्या है?
यह पर्व भगवान शिव और देवी पार्वती के पुनर्मिलन का प्रतीक है और दांपत्य सुख का प्रतीक माना जाता है।
इस दिन महिलाएं क्या करती हैं?
महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत रखकर भगवान शिव-पार्वती की पूजा करती हैं और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं।
नीम की पूजा का महत्व क्या है?
नीम की पूजा को शुद्धता और औषधीय गुणों का प्रतीक माना जाता है। इसे देवी दुर्गा का स्वरूप माना जाता है।
कजरी तीज पर क्या पहनना चाहिए?
सुहागिन महिलाएं इस दिन हरी साड़ी, चूड़ियां, सिंदूर और बिंदी पहनती हैं।