क्या अर्जुन ने कनक दुर्गा मंदिर में तपस्या कर पशुपति अस्त्र पाया?
सारांश
Key Takeaways
- कनक दुर्गा मंदिर शक्ति का प्रतीक है।
- यहां अर्जुन ने तपस्या कर पशुपति अस्त्र प्राप्त किया।
- मंदिर की स्थापना स्वयं मां दुर्गा द्वारा हुई।
- बेला के फूलों से भगवान शिव की पूजा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
- नवरात्रों में विशेष अनुष्ठान होते हैं।
नई दिल्ली, 28 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। दक्षिण भारत अपनी सांस्कृतिक कला और पुरातात्विक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है। यहां अनेक चमत्कारी मंदिर स्थित हैं।
आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में स्थित कनक दुर्गा मंदिर अपनी अद्भुत वास्तुकला के लिए जाना जाता है। इस मंदिर का इतिहास महाभारत और महिषासुर से जुड़ा हुआ है। भक्त दूर-दूर से मां दुर्गा के शक्ति रूप के दर्शन करने आते हैं।
कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना स्वयं हुई थी। इसे स्वयंप्रभु मंदिर माना जाता है। यहां कई किंवदंतियां प्रचलित हैं। कहा जाता है कि महिषासुर का वध करने के बाद ऋषि इंद्रकील ने मां दुर्गा को पर्वत पर निवास के लिए कहा था। मां के विराजमान होने पर ऋषि इंद्रकील ने उनकी आराधना के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया। परिसर में भगवान शिव और कार्तिकेय का भी मंदिर है, जिसकी स्थापना बाद में चालुक्यों द्वारा की गई।
यह मान्यता है कि यहां जो भी भक्त भगवान शिव की पूजा बेला के फूलों से करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसी कारण भगवान शिव को मल्लेश्वर स्वामी भी कहा जाता है।
मंदिर का इतिहास महाभारत से भी जुड़ा हुआ है। किंवदंतियों के अनुसार, अर्जुन को यहां पशुपति अस्त्र प्राप्त हुआ था। अर्जुन ने भगवान शिव और दुर्गा मां की कठोर तपस्या की, जिसके फलस्वरूप उन्हें यह अस्त्र मिला। इस अस्त्र का उपयोग अर्जुन ने कभी नहीं किया, क्योंकि भगवान शिव ने चेतावनी दी थी कि यदि वह इसे किसी मनुष्य पर प्रयोग करते हैं तो पूरी पृथ्वी का विनाश हो जाएगा।
इस मंदिर को शक्ति का प्रतीक माना जाता है क्योंकि मां कनक भगवान शिव के दाहिनी तरफ स्थित हैं। आमतौर पर मां की प्रतिमा बाईं तरफ होती है। लोग इस मंदिर में शत्रुओं पर विजय पाने के लिए विशेष तौर पर पूजा करने आते हैं। कहा जाता है कि मां कनक स्वयं शत्रुओं का नाश करती हैं। नवरात्रों में यहां विशेष अनुष्ठान होते हैं, जहां कृष्णा नदी से सटे इस मंदिर में मां को हंस के आकार की नाव में नौकाविहार कराया जाता है।