क्या विश्व का एकमात्र मंदिर है, जहाँ साक्षात अर्धनारीश्वर स्वरूप में विराजमान हैं महादेव?
सारांश
Key Takeaways
- काठगढ़ महादेव मंदिर की अद्भुत विशेषता इसके अर्धनारीश्वर स्वरूप में है।
- यह मंदिर भगवान शिव और मां पार्वती के अद्भुत मिलन का प्रतीक है।
- मौसम के अनुसार शिवलिंग के हिस्सों के बीच की दूरी बदलती है।
- इस मंदिर से जुड़ी ऐतिहासिक कहानियाँ इसे और भी रोचक बनाती हैं।
कांगड़ा, 28 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। देवभूमि हिमाचल प्रदेश अपने अद्भुत पहाड़ों, नदियों और धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ भगवान शिव के कई मंदिर हैं, लेकिन कांगड़ा जिले के इंदौरा उपमंडल में स्थित काठगढ़ महादेव मंदिर अपनी विशेष पहचान के लिए जाना जाता है।
यह मंदिर दुनिया का एकमात्र स्थान है जहाँ भगवान का शिवलिंग दो हिस्सों में बंटा हुआ है। एक हिस्से में भगवान शिव और दूसरे में मां पार्वती विराजमान हैं। इसलिए इसे अर्धनारीश्वर रूप का प्रतीक माना जाता है।
इस मंदिर की एक विशेषता यह भी है कि शिवलिंग के दोनों हिस्सों के बीच की दूरी मौसम और ग्रह-नक्षत्रों के अनुसार बदलती रहती है।
कहा जाता है कि गर्मियों में दोनों हिस्सों के बीच का अंतर बढ़ता है, जबकि सर्दियों में यह लगभग एक समान हो जाता है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे भगवान शिव और मां पार्वती एकाकार हो रहे हों। शिवलिंग का आकार अष्टकोणीय है और इसका रंग काला-भूरा है। भगवान शिव का हिस्सा लगभग ७ से ८ फीट ऊँचा है, जबकि मां पार्वती का हिस्सा ५ से ६ फीट ऊँचा है।
काठगढ़ महादेव मंदिर से जुड़ी एक ऐतिहासिक कथा है। कहा जाता है कि जब विश्व विजेता सिकंदर भारत आया और पंजाब पहुंचा, तो उसने मीरथल गांव में अपनी सेना को विश्राम करने का आदेश दिया। उसी समय उसने देखा कि एक फकीर एक शिवलिंग की पूजा में लीन है। सिकंदर ने उसे अपने साथ यूनान जाने के लिए कहा, लेकिन फकीर ने मना कर दिया। उसकी भक्ति से प्रेरित होकर सिकंदर ने वहाँ काठगढ़ महादेव मंदिर के चारों ओर दीवार और ब्यास नदी की ओर अष्टकोणीय चबूतरे बनवाने का आदेश दिया।
काठगढ़ महादेव मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह शिव और शक्ति के अद्भुत मिलन का प्रतीक है। यहाँ श्रद्धालुओं की हमेशा भारी भीड़ लगी रहती है। भक्त बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ अर्धनारीश्वर की पूजा करते हैं।