क्या 8 फुट ऊँचा शिवलिंग दो भागों में बंटा है? रहस्यमयी मंदिर में माता पार्वती और महादेव का अनोखा रूप

सारांश
Key Takeaways
- शिवलिंग दो भागों में बंटा है, जो अद्वितीय है।
- मंदिर का इतिहास शिव पुराण से जुड़ा है।
- सावन में यहाँ विशेष पूजा का महत्व है।
- यह स्थान भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।
- मंदिर का निर्माण महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया था।
कांगड़ा, 6 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। क्या आप जानते हैं कि सावन का महीना ‘विश्व के नाथ’ के लिए कितना महत्वपूर्ण है? यह माह भोलेनाथ के भक्तों के लिए विशेष होता है। इस महीने हम आपको कुछ अद्भुत और रहस्यमयी शिव मंदिरों के बारे में बताएंगे। इसी क्रम में हम कांगड़ा जिले के काठगढ़ में स्थित एक विशेष मंदिर के बारे में चर्चा करेंगे।
यह मंदिर अपनी अनोखी विशेषताओं और प्राचीन इतिहास के कारण विश्व में प्रसिद्ध है। खासकर सावन के महीने में यह मंदिर भक्तों के लिए एक प्रमुख स्थल बन जाता है। यहाँ का शिवलिंग दो भागों में विभाजित है, जिसमें से एक भाग भगवान शिव और दूसरा भाग माता पार्वती का प्रतीक है। यह विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहाँ शिवलिंग इस विशेष स्वरूप में स्थापित है।
काठगढ़ मंदिर की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, मंदिर का शिवलिंग लगभग 8 फुट ऊँचा है, जो दो हिस्सों में बंटा हुआ है। एक हिस्सा 5.5 फुट का है, जो भगवान शिव का प्रतीक है, जबकि दूसरा भाग लगभग 1.5 फुट का है, जिसे माता पार्वती के स्वरूप के रूप में सम्मानित किया जाता है। इस शिवलिंग की एक अन्य विशेषता यह है कि दोनों हिस्सों के बीच की दूरी ग्रहों और नक्षत्रों के प्रभाव के अनुसार बदलती रहती है। ग्रीष्म ऋतु में यह शिवलिंग दो भागों में स्पष्ट रूप से विभाजित हो जाता है, जबकि शीत ऋतु में दोनों हिस्से एक-दूसरे के करीब आकर एक रूप धारण कर लेते हैं।
यह प्राकृतिक घटना भक्तों के लिए एक आश्चर्य का विषय है, जो इसे अर्धनारीश्वर स्वरूप का प्रतीक मानते हैं।
काठगढ़ मंदिर का इतिहास शिव पुराण और स्थानीय कथाओं से जुड़ा हुआ है। एक कथा के अनुसार, जब ब्रह्मा और विष्णु के बीच घोर युद्ध हुआ, तब भगवान शिव ने इस युद्ध को समाप्त करने के लिए स्वयं को लिंग रूप में प्रकट किया। यह वही स्थान है जहाँ भगवान शिव ने युद्ध को शांत किया और यह शिवलिंग स्वयंभू रूप में प्रकट हुआ।
दूसरी कथा गुर्जर समुदाय से जुड़ी है। कहा जाता है कि गुर्जर अपनी दूध की मटकियां इस शिवलिंग रूपी चट्टान पर रखा करते थे। जब यह चट्टान ऊँची होने लगी, तो भैरव जी ने इसे तराशकर छोटा कर दिया, परंतु यह फिर से ऊँची हो गई। इस चमत्कार की खबर राजा तक पहुँची, जिन्होंने विद्वानों से परामर्श किया। विद्वानों ने सावन मास में शिव पूजन की सलाह दी, जिसके बाद यह शिवलिंग और पार्वती की प्रतिमा के रूप में प्रकट हुआ।
मानवता का यह मंदिर प्राचीन काल से है, जिसकी दीवारों के अवशेष कई बार मरम्मत किए गए हैं। इस मंदिर का निर्माण महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया था, जो हर वर्ष कांगड़ा के बृजेश्वरी, ज्वालामुखी और काठगढ़ मंदिरों में दर्शन के लिए आते थे। महाराजा रणजीत सिंह ने इस मंदिर को भव्य रूप प्रदान किया और इसे हिंदू-सिख समानता का प्रतीक बनाया। उन्होंने अपने शासनकाल में इस मंदिर के धार्मिक स्थलों के सुधार के लिए सरकारी कोष से धन आवंटित किया और यहाँ विधिवत पूजा-अर्चना की व्यवस्था की। मंदिर के पास एक प्राचीन कुआं है, जिसका जल पवित्र और रोग निवारक माना जाता है।
महाराजा रणजीत सिंह इस कुएं का जल अपने शुभ कार्यों के लिए मंगवाते थे। कई साधु और तांत्रिक इस स्थान को तांत्रिक शक्तियों से युक्त मानते हैं। शिवलिंग और मंदिर परिसर अष्टकोणीय आकार में निर्मित हैं। यह मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है, जहाँ से मैदानी क्षेत्रों का खूबसूरत दृश्य दिखाई देता है। मंदिर के पास शंभू धारा खड्ड और व्यास नदी का संगम इसे और भी आकर्षक बनाता है।