क्या कौंच बीज का सीधे सेवन करना खतरनाक है? आयुर्वेद से जानें शुद्ध करने का सही तरीका

सारांश
Key Takeaways
- कौंच बीज का सेवन सीधे न करें, शुद्ध करें।
- शुद्धि के लिए आयुर्वेदिक विधियाँ अपनाएँ।
- यह बीज यौन शक्ति और मानसिक स्वास्थ्य में फायदेमंद हैं।
- बिना शोधन के सेवन से समस्याएँ हो सकती हैं।
- पारंपरिक शोधन विधियाँ अपनाएँ।
नई दिल्ली, ३० सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। कौंच बीज आयुर्वेद में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और बलवर्धक औषधि के रूप में जाना जाता है, जिसका मुख्य उपयोग पुरुषों की यौन शक्ति, मानसिक स्फूर्ति और स्नायु तंत्र को मजबूत करने के लिए किया जाता है। हालाँकि, आयुर्वेद में किसी भी औषधीय द्रव्य का सेवन करने से पहले उसकी शुद्धि करना आवश्यक होता है, ताकि उसकी विषाक्तता समाप्त हो जाए और औषधीय गुण पूरी तरह सुरक्षित और प्रभावी बन सकें।
कौंच बीज स्वाभाविक रूप से तीव्र और उष्ण प्रकृति के होते हैं, जिनका सीधे सेवन करने पर शरीर में जलन, गर्मी या पाचन संबंधी विकार उत्पन्न हो सकते हैं। इसलिए इनका शोधन आयुर्वेद में अत्यंत आवश्यक है।
कौंच बीज की सतह पर एक महीन रोमयुक्त परत होती है, जो त्वचा के संपर्क में आने पर खुजली, जलन और एलर्जी पैदा कर सकती है। इसके अलावा, बिना शोधन के ये बीज पाचन तंत्र में अवरोध उत्पन्न कर सकते हैं। इसलिए इन्हें विशेष आयुर्वेदिक विधियों से शुद्ध किया जाता है, जिससे उनके हानिकारक प्रभाव समाप्त हो जाते हैं और वे सुरक्षित औषधि बन जाते हैं।
शोधन की पारंपरिक विधि में सबसे पहले कौंच बीजों को अच्छी तरह से धूप में सुखाया जाता है, फिर उनकी रोमयुक्त परत को सावधानीपूर्वक रगड़कर हटाया जाता है। इसके बाद शोधन के लिए तीन प्रमुख विधियां अपनाई जाती हैं।
पहली विधि में बीजों को गाय के दूध में डालकर धीमी आंच पर ३ से ६ घंटे तक पकाया जाता है, जब तक बीज मुलायम होकर छिलका अलग न कर दें। पकाने के बाद छिलका हटाकर बीजों को धोकर सुखाया जाता है और फिर चूर्ण बनाया जाता है।
दूसरी विधि में बीजों को दूध में डालकर लगभग २४ घंटे के लिए रखा जाता है, जिससे वे फूल जाते हैं और छिलका स्वतः अलग हो जाता है।
तीसरी विधि गोमूत्र में शोधन की है, जो खासतौर पर वात और स्नायु रोगों में उपयोगी मानी जाती है। इसमें बीजों को गोमूत्र में उबालकर शुद्ध किया जाता है।
शुद्ध कौंच बीजों को पीसकर चूर्ण बनाया जाता है, जो अब पूरी तरह विषरहित और औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसे आयुर्वेद में कौंच पाक, कौंच चूर्ण, और कौंच घृत के रूप में उपयोग किया जाता है।
ये वीर्य वृद्धि, शुक्र धातु की पुष्टि, मानसिक तनाव और अनिद्रा में लाभकारी होते हैं। इसके अलावा, कौंच बीज पार्किंसन जैसे तंत्रिका रोगों में भी सहायक साबित हुए हैं, क्योंकि इनमें प्राकृतिक एल-डोपा पाया जाता है। स्नायु तंत्र को मजबूत कर शारीरिक कमजोरी दूर करने में भी ये अत्यंत उपयोगी हैं।