क्या खरमास में शुभ और मांगलिक कार्य करना वर्जित है? जानिए मान्यता
सारांश
Key Takeaways
- खरमास में शुभ कार्यों को टालना उचित है।
- इस समय ध्यान और साधना पर ध्यान केंद्रित करें।
- दान और सेवा का कार्य करें।
- आध्यात्मिक उन्नति के लिए इसे एक अवसर समझें।
- सकारात्मक ऊर्जा के लिए सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करें।
नई दिल्ली, 19 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। खरमास को हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस अवधि में विवाह, गृह प्रवेश, नामकरण, मुंडन या किसी नए कार्य की शुरुआत करना वर्जित माना जाता है। कहा जाता है कि इस समय किए गए कार्यों में कोई न कोई बाधा आ सकती है या अशुभ फल मिल सकता है।
इसे अन्य समय से इसीलिए अलग माना जाता है क्योंकि इस अवधि में सूर्य देव धनु राशि में प्रवेश करते हैं, और उनकी ऊर्जा सामान्य से कम होती है।
ज्योतिष के अनुसार, सूर्य की यह स्थिति ग्रहों और नक्षत्रों के शुभ प्रभाव को कम कर देती है। जब ग्रह और सूर्य की ऊर्जा मंद होती है, तो नए आरंभ का फल भी अपेक्षा के अनुसार सफल नहीं होता। यही कारण है कि शास्त्रों में इस अवधि में विवाह, गृह प्रवेश, नामकरण, मुंडन, या मांगलिक कार्यों को आरंभ करने से बचने की सलाह दी गई है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह समय देवताओं के विश्राम का भी होता है। पुराणों और ज्योतिष शास्त्रों में इसे भगवान सूर्य और अन्य देवताओं की ऊर्जा की स्थिरता का समय बताया गया है। इस दौरान यदि कोई नए कार्य का आरंभ करता है, तो उसका प्रभाव स्थायी नहीं होता। यही कारण है कि मांगलिक कार्यों को टालने की परंपरा है। शास्त्र बताते हैं कि इस समय ग्रहों का शुभ दृष्टि प्रभाव कम हो जाता है और ग्रह दशा में बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं।
हालांकि, इसका मतलब यह नहीं कि यह समय बेकार है। खरमास आध्यात्मिक उन्नति, संयम और आत्मचिंतन का अवसर देता है। इस दौरान लोग बाहरी कार्यों के बजाय अपने अंदर की दुनिया पर ध्यान केंद्रित करते हैं। ध्यान, साधना, मंत्र-जप और योग करने से इस समय विशेष लाभ होता है। ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने से शरीर और मन शुद्ध होते हैं, जबकि सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करने से सकारात्मक ऊर्जा और जीवन-शक्ति बढ़ती है।
खरमास में दान और सेवा का विशेष महत्व है। तिल, गुड़, अन्न, वस्त्र या जरूरतमंदों की मदद करना इस समय पुण्यदायी माना गया है। यह केवल धार्मिक कर्म नहीं, बल्कि जीवन में करुणा, पवित्रता और सकारात्मक ऊर्जा लाने का माध्यम भी है। मानसिक और भावनात्मक स्थिरता बनाए रखने के लिए संयम रखना आवश्यक है। नए कार्य टालने के बावजूद, आत्मनिरीक्षण और आध्यात्मिक साधना से भविष्य के लिए शुभ आधार तैयार होता है।