क्या खरमास में शुभ कार्य न करने के पीछे 'गधे' हैं वजह? जानिए रहस्य
सारांश
Key Takeaways
- खरमास में शुभ कार्यों को टालने की मान्यता है।
- यह समय भक्ति और साधना का होता है।
- सूर्यदेव और गधों की कथा के माध्यम से यह सिखाया जाता है।
- इस अवधि में पूजा का फल कई गुना बढ़ जाता है।
- खरमास का नाम गधे से जुड़ा है।
नई दिल्ली, 28 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। हिंदू पंचांग में खरमास को ऐसा समय समझा जाता है, जब किसी भी शुभ या मांगलिक कार्य को करने से बचा जाता है। इस दौरान शादी-विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन जैसे महत्वपूर्ण कार्यों को टाल दिया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी विचार किया है कि खरमास का नाम खर (गधा) से क्यों जुड़ा है? इसके पीछे एक दिलचस्प और अर्थपूर्ण पौराणिक कथा है।
खरमास की यह कथा मार्कण्डेय पुराण में वर्णित है। संस्कृत में खर का अर्थ गधा होता है। कथा के अनुसार, एक बार सूर्यदेव अपने सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर पूरे ब्रह्मांड की यात्रा पर निकले। यात्रा लंबी थी और समय के साथ घोड़े थकने लगे। जब सूर्यदेव ने अपने घोड़ों की यह स्थिति देखी, तो उन्हें दया आई और उन्होंने घोड़ों को आराम देने का निर्णय लिया।
हालांकि, सूर्यदेव के सामने एक बड़ी चुनौती थी। यदि रथ रुक जाता, तो सृष्टि का चक्र भंग हो सकता था। दिन-रात, ऋतु और जीवन का संतुलन प्रभावित हो जाता। ऐसे में सूर्यदेव की नजर तालाब के किनारे पानी पी रहे दो खर (गधों) पर पड़ी। उन्होंने सोचा कि क्यों न कुछ समय के लिए रथ में गधों को जोड़ दिया जाए, ताकि रथ चलता रहे और घोड़े आराम कर सकें।
लेकिन घोड़े और गधे की गति और शक्ति अलग होती है। जब गधों को रथ में जोड़ा गया, तो रथ की गति धीमी हो गई। इसका नतीजा यह हुआ कि जो परिक्रमा सामान्यतः कम समय में पूरी होती थी, वही इस बार पूरे एक महीने में पूरी हुई। कथा के अनुसार, इस विलंब के कारण सूर्यदेव के तेज और प्रभाव में कमी आ गई। यही समय आगे चलकर खरमास कहलाया।
इसी मान्यता के कारण खरमास को ऐसा समय माना जाता है, जब सूर्य की ऊर्जा कमजोर रहती है और इसलिए इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि यह समय अशुभ है। वास्तव में, खरमास को भक्ति, संयम और साधना का महीना माना गया है।
खरमास के दौरान विशेष रूप से भगवान विष्णु या सूर्यदेव की पूजा का महत्व बताया गया है। मान्यता है कि इस समय की गई पूजा, दान-पुण्य और जप-तप का फल कई गुना बढ़ जाता है।