क्या कोच्चि में अमित शाह ने राहुल गांधी पर संवैधानिक संस्थाओं के प्रति अविश्वास का आरोप लगाया?

सारांश
Key Takeaways
- अमित शाह का राहुल गांधी पर आरोप: संवैधानिक संस्थाओं के प्रति अविश्वास।
- भाजपा ने 2014 के बाद पॉलिटिक्स ऑफ परफॉर्मेंस की शुरुआत की।
- स्थिरता के कारण नीतियों में निरंतरता बनी हुई है।
- संवैधानिक संस्थाओं के लिए नैतिक जिम्मेदारी का महत्व।
- विपक्ष का विधेयकों पर विरोध।
कोच्चि, 22 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को कोच्चि में कांग्रेस सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी पर संवैधानिक संस्थाओं के प्रति अविश्वास का आरोप लगाया। शाह आगामी महत्वपूर्ण स्थानीय निकाय चुनावों के मद्देनजर भाजपा के राज्य नेतृत्व को तैयार करने के लिए केरल की वाणिज्यिक राजधानी कोच्चि के एक दिवसीय दौरे पर हैं।
एक कार्यक्रम में शाह ने कहा कि देश को नुकसान पहुंचाने वाली स्थितियां पहले की सरकारों की देन हैं। उन्होंने कहा, "जातिवाद, परिवारवाद और तुष्टिकरण हमारे देश के लिए नासूर हैं। 2014 में नरेंद्र मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इन तीनों के स्थान पर 'पॉलिटिक्स ऑफ परफॉर्मेंस' की शुरूआत हुई है, जिसे पूरा देश अनुभव कर रहा है। भ्रष्टाचार को समाप्त करने का प्रयास हमारे पीएम ने किया है। चूंकि स्थिरता है, इसलिए नीतियों में निरंतरता बनी हुई है। जब हम इस 11 साल के कालखंड को देखते हैं तो पाते हैं कि जनता में पहले जो सवाल था कि भविष्य कैसा होगा, वो अब नहीं है। आज 140 करोड़ लोग मानते हैं कि 2047 में भारत शीर्ष पर होगा और इसे लेकर कोई कंफ्यूजन नहीं है।
राहुल गांधी को लेकर पूछे गए सवाल पर शाह ने कहा कि जब से वह मुखिया बने हैं, तब से वह संवैधानिक संस्थाओं को संदेह की दृष्टि से देख रहे हैं। उन्होंने कहा, "अभी जो एसआईआर हो रहा है, वह 2003 में भी हुआ था, 1961 में भी हुआ था और 1970 में भी हुआ था। समस्या क्या है? अगर एसआईआर से कोई नागरिक या राजनीतिक पार्टी संतुष्ट नहीं है, तो वह असेंबली के रिटर्निंग ऑफिसर, जिला कलेक्टर और राज्य के चीफ इलेक्शन ऑफिसर के सामने अपील कर सकता है।"
शाह ने सदन में पेश किए गए तीन विधेयकों को लेकर कहा कि लोकतंत्र में नैतिकता का स्तर बनाए रखना सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों की जिम्मेदारी है। यह बिल किसी एक पार्टी के लिए नहीं हैं। ये बिल भाजपा के मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री पर भी लागू होंगे।
गौरतलब है कि मानसून सत्र के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संघ राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) बिल 2025, जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) बिल 2025 और संविधान (130वां संशोधन) बिल 2025 पेश किए थे। इनमें प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति गिरफ्तार होकर जेल से प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, केन्द्र या राज्य सरकार के मंत्री के रूप में शासन नहीं चला सकता है। विपक्ष ने इन बिलों का विरोध किया।