क्या कोढ़ा विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत फिर से होगी? 2025 का रण?

सारांश
Key Takeaways
- कोढ़ा विधानसभा क्षेत्र की राजनीतिक स्थिति में तेजी से बदलाव आ रहा है।
- 2025 के चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर हो सकती है।
- महिला मतदाता इस बार महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
- कोढ़ा की भौगोलिक स्थिति चुनाव में प्रभाव डाल सकती है।
- क्षेत्र की सामाजिक संरचना चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकती है।
पटना, 5 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के मद्देनजर कोढ़ा विधानसभा क्षेत्र पर राजनीतिक चर्चाएं तेज हो गई हैं। यह क्षेत्र कटिहार जिले का हिस्सा है और पूर्णिया लोकसभा सीट के अंतर्गत आता है। यह क्षेत्र 1967 से अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित है।
कोढ़ा विधानसभा क्षेत्र, जिसमें फलका प्रखंड भी शामिल है, सामाजिक, आर्थिक और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। कोढ़ा एक प्रखंड स्तरीय कस्बा है, जो राष्ट्रीय राजमार्ग 31 पर स्थित है, इसकी भौगोलिक स्थिति इसे रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाती है।
यह कटिहार से लगभग 22 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम और पूर्णिया से 35 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में है। यहां से गंगा नदी महज 15 किलोमीटर दूर दक्षिण में बहती है, जबकि नेपाल की सीमा करीब 81 किलोमीटर उत्तर में है। यह क्षेत्र प्रवास, कृषि और सीमावर्ती सुरक्षा के लिए विशेष महत्व रखता है।
कोढ़ा का इतिहास शरणार्थियों और औद्योगिक बदलावों से जुड़ा हुआ है। भारत-पाक विभाजन के समय पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से आए हिंदू शरणार्थियों ने यहां बसने का फैसला किया। एक समय यह क्षेत्र जूट उद्योग के लिए प्रसिद्ध था, जहां बिहार के विभिन्न हिस्सों, झारखंड के आदिवासी समुदायों और नेपाली प्रवासियों को रोजगार मिलता था। हालांकि, अब यहां की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर निर्भर है। धान, गेहूं, मक्का, जूट और केले जैसी फसलें यहां की प्रमुख कृषि उपज हैं।
कोसी-गंगा का मैदानी क्षेत्र जलोढ़ मिट्टी के कारण बेहद उपजाऊ है, जिससे कृषि को मजबूती मिलती है। यहां कुछ लोग मखाना प्रसंस्करण और छोटे व्यापार में भी लगे हुए हैं, लेकिन बड़े उद्योगों की उपस्थिति अब भी नगण्य है।
कोढ़ा विधानसभा में अब तक 14 बार चुनाव हो चुके हैं, जिनमें कांग्रेस ने छह बार, भाजपा ने तीन बार और जनता दल ने दो बार जीत हासिल की है। लोकतांत्रिक कांग्रेस, जनता पार्टी और जेडीयू को एक-एक बार सफलता मिली है। यह क्षेत्र कभी कांग्रेस का गढ़ रहा, लेकिन पिछले दो दशकों में भाजपा ने अपनी पकड़ मजबूत की है। खासतौर पर महेश पासवान और उनकी पत्नी कविता देवी के जरिए भाजपा ने इस क्षेत्र में प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराई है।
राजनीतिक इतिहास में कोढ़ा के पहले विधायक पहले अनुसूचित जाति के मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री थे। उन्होंने 1967 और 1972 में कांग्रेस से, जबकि 1969 में लोकतांत्रिक कांग्रेस से जीत हासिल की थी। इसके बाद 1977 में जनता पार्टी के सीता राम विधायक बने। 1980 में कांग्रेस की वापसी हुई और विश्वनाथ ऋषि ने जीत दर्ज की। 1990 में सीता राम ने जनता दल के टिकट पर जीत हासिल की। वर्ष 2000 में भाजपा ने इस सीट पर पहली बार जीत दर्ज की, जब महेश पासवान विधायक बने।
2005 में हुए दो विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की सुनीता देवी ने लगातार दोनों बार जीत दर्ज की, जिससे भाजपा की चुनौती कमजोर हुई। 2010 में भाजपा के महेश पासवान ने वापसी की। 2015 में कांग्रेस की पूनम पासवान ने जीत दर्ज की। लेकिन, 2020 के चुनाव में भाजपा की कविता देवी ने कांग्रेस को पीछे छोड़ते हुए विजय प्राप्त की।
2025 के चुनाव में मुकाबला एक बार फिर दिलचस्प होने वाला है। भाजपा जहां अपनी पिछली जीत को दोहराने के लिए रणनीति बना रही है, वहीं कांग्रेस अपनी पुरानी पकड़ को पुनः पाने की कोशिश कर रही है। क्षेत्र की सामाजिक संरचना, जातीय समीकरण और महिला मतदाताओं की संख्या इस बार निर्णायक भूमिका निभा सकती है।
चुनाव आयोग के अनुसार, 2024 में कोढ़ा विधानसभा की कुल अनुमानित जनसंख्या 5,06,116 है, जिसमें पुरुषों की संख्या 2,54,150 और महिलाओं की संख्या 2,51,966 है। वहीं, मतदाताओं की कुल संख्या 3,00,389 है, जिसमें 1,53,337 पुरुष, 1,47,040 महिलाएं और 12 थर्ड जेंडर के मतदाता शामिल हैं।
अब देखना यह है कि क्या भाजपा एक बार फिर अपने प्रदर्शन को दोहराने में सफल रहती है या कांग्रेस और अन्य दल इस सीट पर वापसी करने में सफल होते हैं। जनता का रुझान किसकी तरफ होगा, यह तो आने वाले महीनों में स्पष्ट होगा, लेकिन इतना तय है कि कोढ़ा विधानसभा चुनाव 2025 का मुकाबला न केवल दिलचस्प होगा, बल्कि राज्य की राजनीति को भी प्रभावित कर सकता है।