क्या हिमाचल प्रदेश में राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला ने 300 देवी-देवताओं के बीच कुल्लू दशहरा उत्सव का शुभारंभ किया?

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क्या हिमाचल प्रदेश में राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला ने 300 देवी-देवताओं के बीच कुल्लू दशहरा उत्सव का शुभारंभ किया?

सारांश

हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय दशहरा समारोह का उद्घाटन राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला ने 300 देवी-देवताओं की उपस्थिति में किया। इस अवसर पर उन्होंने भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा में भाग लिया। यह उत्सव नशामुक्ति और सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण का प्रतीक है।

Key Takeaways

  • कुल्लू दशहरा में 300 से अधिक देवी-देवताओं की उपस्थिति होती है।
  • राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला ने उत्सव का उद्घाटन किया है।
  • यह त्यौहार नशामुक्ति और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है।
  • भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा में हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं।
  • यह उत्सव 1637 ई. से मनाया जा रहा है।

कुल्लू, 2 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। हिमाचल प्रदेश के 300 से अधिक देवी-देवताओं की उपस्थिति में राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला ने गुरुवार को यहां एक सप्ताह तक चलने वाले अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरा महोत्सव का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उन्होंने भगवान रघुनाथ की पारंपरिक रथ यात्रा में भाग लिया।

सदियों पुराना कुल्लू दशहरा विजया दशमी से आरंभ होता है, जबकि अन्य स्थानों पर उत्सव समाप्त हो जाता है। 8 अक्टूबर को व्यास नदी के तट पर लंकादहन समारोह के दौरान एकत्रित देवताओं द्वारा 'दुष्ट साम्राज्य' का विनाश किया जाएगा। इस दौरान हजारों श्रद्धालु भगवान रघुनाथ के पवित्र रथ को खींचते हैं।

यह उत्सव 1637 ई. में शुरू हुआ, जब राजा जगत सिंह ने कुल्लू पर शासन करते हुए दशहरा के दौरान भगवान रघुनाथ के सम्मान में अनुष्ठान करने के लिए सभी स्थानीय देवताओं को आमंत्रित किया।

परंपरा के अनुसार, भक्तगण अपने देवता की मूर्ति को एक सुंदर सुसज्जित पालकी में तुरही और ढोल की ध्वनि के साथ सुरम्य कुल्लू घाटी में स्थित अपने-अपने मंदिरों से इस ऐतिहासिक नगर में लाते हैं। यहां एकत्रित देवता उत्सव के पहले और अंतिम दिन भगवान रघुनाथ के रथ के नेतृत्व में दशहरा जुलूस में भाग लेते हैं।

इस अवसर पर राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि जहां विश्व भर में लोग अलग-अलग तरीकों से दशहरा मनाते हैं, वहीं हिमाचल प्रदेश में श्रद्धालु भगवान रघुनाथ के रथ को खींचते हैं, जिससे सांस्कृतिक मूल्यों को मजबूती मिलती है।

उन्होंने कहा, "यह त्यौहार न केवल एक उत्सव है बल्कि आस्था, एकता और हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण का प्रतीक भी है।"

राज्यपाल शुक्ला ने आगे कहा, "हिमाचल की जेन-एक्स और विदेश की जेन-एक्स में यही अंतर है कि हिमाचल में जेन-एक्स भगवान रघुनाथ जी का रथ खींचती है और इस तरह हमारी संस्कृति को आगे बढ़ाती है। वे परंपराओं से जुड़े रहते हैं और विरासत के संरक्षक के रूप में काम करते हैं।"

उन्होंने हिमाचल को नशामुक्त राज्य बनाने के लिए सभी देवी-देवताओं से प्रार्थना की तथा समाज से इस बुराई को समाप्त करने के लिए सामूहिक रूप से आगे आने का आग्रह किया।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि देवभूमि हिमाचल में नशे के लिए कोई जगह नहीं है। हमें मिलकर आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण बनाना होगा। हाल की प्राकृतिक आपदाओं का उल्लेख करते हुए राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला ने कहा कि राज्य को इस वर्ष भी काफी नुकसान हुआ है, लेकिन लोगों के साहस और दृढ़ संकल्प ने सामान्य जीवन बहाल करने में मदद की है।

उन्होंने नागरिकों से अपील की कि वे नदियों और नालों के निकट निर्माण गतिविधियां न करें तथा पर्यावरण संरक्षण में सक्रिय योगदान दें।

इसके बाद राज्यपाल ने सरकारी विभागों, बोर्डों, निगमों और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा लगाई गई प्रदर्शनियों का उद्घाटन किया।

उन्होंने स्टालों का दौरा किया और प्रदर्शनियों की सराहना की। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि हिमाचल अपनी प्राचीन सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है और आसपास के वातावरण को स्वच्छ रखने तथा प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित रखने के लिए सामूहिक जिम्मेदारी की आवश्यकता है।

राज्यपाल ने कहा, "यह त्यौहार हमारी एकता के बंधन को मजबूत करे, हमारे राज्य में समृद्धि लाए और हमें एक उज्जवल और अधिक शांतिपूर्ण भविष्य की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित करे।"

Point of View

बल्कि यह सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है। राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला का नशामुक्ति का संदेश हमें समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रेरित करता है। यह उत्सव हमें अपनी परंपराओं को संजोने और आगे बढ़ाने का अवसर देता है।
NationPress
02/10/2025

Frequently Asked Questions

कुल्लू दशहरा कब शुरू हुआ?
कुल्लू दशहरा की शुरुआत 1637 ई. में राजा जगत सिंह के शासनकाल में हुई थी।
इस वर्ष कुल्लू दशहरा कब मनाया जाएगा?
कुल्लू दशहरा इस वर्ष 8 अक्टूबर को मनाया जाएगा।
कुल्लू दशहरा कैसे मनाया जाता है?
कुल्लू दशहरा में भक्तगण अपने देवता की मूर्ति को सजाए गए पालकी में लाते हैं और भगवान रघुनाथ के रथ के साथ जुलूस में भाग लेते हैं।
राज्यपाल ने नशामुक्ति के लिए क्या कहा?
राज्यपाल ने सभी देवी-देवताओं से प्रार्थना की कि हिमाचल को नशामुक्त राज्य बनाया जाए।
कुल्लू दशहरा का क्या महत्व है?
कुल्लू दशहरा सांस्कृतिक एकता, आस्था और हमारी समृद्ध विरासत के संरक्षण का प्रतीक है।