क्या 8 में से 1 व्यक्ति मानसिक विकार का शिकार है? जानें 'सत्त्वावजय चिकित्सा' कैसे मदद कर सकती है

सारांश
Key Takeaways
- सत्त्वावजय चिकित्सा मानसिक विकारों का प्राकृतिक उपचार है।
- यह आत्म-जागरूकता और मानसिक शक्ति बढ़ाने में सहायक है।
- ध्यान और प्राणायाम जैसे योग तकनीकें इस चिकित्सा का हिस्सा हैं।
- यह दवाओं पर निर्भरता को कम करती है।
- सात्विक आहार और नियमित दिनचर्या भी महत्वपूर्ण हैं।
नई दिल्ली, 17 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। ऑफिस का तनाव हो या घर की चिंता, मानसिक विकारों का शिकार होना आज के समय में एक सामान्य समस्या बन गई है। लेकिन आयुर्वेद के पास ऐसे कठिनाइयों से बाहर निकलने का उपाय है, जिसे ‘सत्त्वावजय चिकित्सा’ कहा जाता है।
आयुर्वेद की सत्त्वावजय चिकित्सा एक गैर-औषधीय पद्धति है, जो मानसिक रोगों के उपचार में मन को नियंत्रित करने पर ध्यान केंद्रित करती है। चरक संहिता के अनुसार, यह मन को हानिकारक विचारों और तनावों से दूर रखने का कार्य करती है। सत्त्वावजय चिकित्सा सत्त्व (शांति) को बढ़ाकर रजस (उत्तेजना) और तमस (आलस्य) को संतुलित करती है। इसमें अष्टांग योग की तकनीकें, जैसे कि ध्यान, प्राणायाम और आत्म-नियंत्रण, शामिल हैं।
भारतीय दर्शन में अष्टांग योग मन को नियंत्रित करने का एक महत्वपूर्ण साधन है। इस प्रकार, सत्त्वावजय चिकित्सा योग और आत्म-चिंतन के माध्यम से मानसिक शांति और संतुलन प्रदान करती है। यह चिंता, अवसाद और तनाव जैसे मानसिक विकारों के मूल कारणों पर ध्यान केंद्रित करती है। यह दवाओं पर निर्भरता को कम करती है और व्यक्ति को आत्म-जागरूकता और मानसिक शक्ति प्रदान करती है।
भारत सरकार का आयुष मंत्रालय विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानसिक विकारों से संबंधित आंकड़ों के साथ ‘सत्त्वावजय चिकित्सा’ के बारे में जानकारी प्रदान करता है। मंत्रालय के अनुसार, विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया में हर आठ में से एक व्यक्ति किसी न किसी मानसिक विकार से जूझ रहा है। इस समस्या का समाधान आयुर्वेद की प्राचीन पद्धति सत्त्वावजय चिकित्सा में मिलता है, जिसे विश्व की पहली प्रलेखित मनोचिकित्सा प्रणाली माना जाता है। यह चिकित्सा न केवल मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाती है, बल्कि कई अन्य पहलुओं में भी लाभकारी है।
चरक संहिता में सत्त्वावजय की प्रक्रिया को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि यह मन को हानिकारक विचारों और इच्छाओं से दूर रखने की प्रक्रिया है। आयुर्वेद के अनुसार, मन में तीन गुण होते हैं: सत्त्व (शांति, संतुलन), रजस (अति सक्रियता, उत्तेजना), और तमस (आलस्य, अंधकार)। मानसिक विकार तब उत्पन्न होते हैं जब रजस और तमस का प्रभाव बढ़ जाता है। सत्त्वावजय चिकित्सा सत्त्व के बल को बढ़ाकर रजस और तमस को नियंत्रित करती है, जिससे मन शांत और संतुलित होता है।
सत्त्वावजय चिकित्सा मन को स्वस्थ और सकारात्मक दिशा में ले जाने पर केंद्रित है। इसके लिए नियमित ध्यान, प्राणायाम और योग आसन मन को शांत करते हैं और तनाव को कम करते हैं। सात्विक आहार (ताजा, शुद्ध और हल्का भोजन), नियमित दिनचर्या और प्रकृति के साथ समय बिताना मन को स्थिरता प्रदान करता है। नकारात्मक विचारों, गुस्से या चिंता से दूरी बनाकर मन को सकारात्मक दिशा में मोड़ना भी लाभदायक है। यही नहीं, आध्यात्मिकता के माध्यम से भी मन को शांति दी जा सकती है। भक्ति, प्रार्थना या आत्म-चिंतन के माध्यम से मन को शांति प्रदान करना आवश्यक है।