क्या आम लोग स्वच्छता के प्रति जागरूक हो रहे हैं? : पर्यावरणविद
सारांश
Key Takeaways
- स्वच्छता का महत्व हमारे जीवन में बेहद आवश्यक है।
- सामूहिक प्रयास से ही हम समाज में बदलाव ला सकते हैं।
- पर्यावरणविदों की सक्रियता से जागरूकता बढ़ रही है।
- स्कूल और कॉलेजों में बच्चों को स्वच्छता के बारे में शिक्षा देना आवश्यक है।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन इस पहल को और भी मजबूत बनाता है।
नई दिल्ली, 16 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में स्वच्छ हिमालयी पहाड़ी शहर पहल कार्यक्रम के लिए एक कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें कई पर्यावरणविद शामिल हुए। सभी ने स्वच्छता पर जोर दिया और इसे अपने जीवन का अहम हिस्सा बताया। कार्यक्रम में शामिल पर्यावरणविदों ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि अभी भी बड़ी संख्या में लोग हैं जो स्वच्छता के प्रति जागरूक नहीं हैं। हम इस दिशा में लगातार प्रयासरत हैं और उन्हें स्वच्छता के बारे में जागरूक करने का प्रयास कर रहे हैं ताकि समाज में सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिले।
पर्यावरणविद प्रदीप सांगवान ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि हम लोगों को लगातार स्वच्छता के लिए जमीनी स्तर पर जागरूक कर रहे हैं। विशेषकर हॉलिडे डेस्टिनेशन में लोग इस विषय में जागरूक नहीं हैं, इसलिए हम पहले ऐसी जगहों को चिन्हित करते हैं और फिर उन्हें स्वच्छता के प्रति जागरूक करते हैं। इसके बाद अनुपयोगी वस्तुओं (कूड़ों) का वर्गीकरण करते हैं। आज हमने इसी पर चर्चा की है। इसके लिए आगे क्या कदम उठाने हैं, इसकी पूरी रूपरेखा हमने तैयार कर ली है।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' में इसका उल्लेख किया था। उन्होंने हमें इस संबंध में फोन भी किया था। यह हमारे लिए बहुत बड़ी बात है कि वे खुद हमें फोन कर रहे हैं। वे जानना चाहते हैं कि काम कैसा चल रहा है। हम प्रतिदिन सात से आठ टन कूड़ा संग्रहित कर रहे हैं। यह सब कुछ संभव हो पाया है, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमारी इस पहल में रुचि ली है। यदि प्रधानमंत्री हमारी इस छोटी सी पहल का भी संज्ञान लेते हैं, तो इससे यह स्पष्ट होता है कि उनका देश की स्वच्छता को लेकर कितना बड़ा दृष्टिकोण है। हम हमेशा उनके प्रति आभारी रहेंगे कि उन्होंने हमारी इस पहल का स्वागत किया। इससे अन्य लोग भी प्रेरित हुए हैं और आगामी दिनों में समाज में सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिलेगा।
उन्होंने कहा कि हमारे अभियान का नाम हीलिंग हिमालय है। इसके तहत हम पहाड़ों को भी हील करते हैं और खुद को भी। व्यक्तिगत तौर पर मैंने इस अभियान से बहुत कुछ सीखा है। उदाहरण के लिए, मान लीजिए, आपने किसी दूसरे का फेंका हुआ कचरा उठा लिया, तो आप अपने जीवन में कभी खुद कचरा नहीं फेकेंगे। इससे बड़ी सीख नहीं हो सकती। हमें इसके बारे में स्कूल और कॉलेज में ही बच्चों को बताना चाहिए। इस पहल से आम लोग काफी प्रभावित हुए हैं और वे अपने समाज से कचरा साफ करने के लिए प्रेरित हुए हैं।
कीन संस्था की अध्यक्ष सुनीता कुदले ने कहा कि हमारी संस्था मूल रूप से लोगों के आंदोलन का परिणाम है। हम सभी ने इस संस्था की स्थापना की है। हमारी संस्था दूर-दूर जाकर कचरा संग्रहित करती है। हमारी संस्था में कुल 180 सदस्य हैं, जिनमें से 130 महिलाएं हैं, जो बहुत ही पिछड़े वर्ग से आती हैं। ये महिलाएं शिक्षित नहीं हैं, लेकिन अपने परिवार के लिए कमाती हैं। कोविड के दौरान, यह एक अकेली संस्था थी जिसने स्वच्छ भारत मिशन में हिस्सा लिया और जमीनी स्तर पर काम किया। हमारी संस्था ने न केवल कोविड, बल्कि अन्य महामारियों से भी लोगों को बचाकर रखा।
उन्होंने कहा कि सफाई की बात सभी करते हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस संबंध में एक नारा दिया, जिसका सकारात्मक असर पड़ा है। पहले जब हम कूड़ा उठाने जाते थे, तो लोग कहते थे कि कूड़े वाले आ गए। लेकिन अब जब हम जाते हैं, तो लोग कहते हैं कि देखो कीन के लोग आ गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा नारा लगाने के बाद पूरे समाज में आत्मविश्वास और स्वाभिमान का एक नया वातावरण बनाया गया है, जिसे शब्दों में नहीं कहा जा सकता। अब लोग कहते हैं कि कूड़ा हम फैलाते हैं, लेकिन ये लोग उठाते हैं।
उन्होंने कहा कि मसूरी एक पर्यटक स्थल है, जहां कई पर्यटक आते हैं। यहां न केवल आम लोग हैं, बल्कि कई स्कूल और शिक्षण संस्थान भी हैं। यहां आईएएस का प्रशिक्षण केंद्र लबासना भी है। यह 200 साल पुराना शहर है। यहां कई विरासत हैं और यहां डंपिंग ग्राउंड भी था, जहां पिछले 90 वर्षों से कूड़ा फेंका जा रहा था। इसके बाद पूरे शहर ने मिलकर बीड़ा उठाया कि हम इसे साफ करेंगे। इसके बाद इसे साफ किया गया। आज यहां बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। वर्तमान में मसूरी के लोगों में स्वच्छता के प्रति सकारात्मक बदलाव आया है।
इत्तिशा सारा ने कहा कि सोशल डिजाइनिंग में मास्टर करने के बाद मेरे मन में इस देश में मौजूद कूड़े के निस्तारण की प्रेरणा जगी। मास्टर की पढ़ाई के बाद मैंने तय किया कि मैं पूर्वोत्तर जाऊंगी और वहां स्वच्छता के अभियान को नई ऊर्जा दूंगी। इसके बाद मैंने कूड़े के प्रबंधन के बारे में सीखने के बाद इसे अपने राज्य में लागू करने का निर्णय लिया। असम में कुछ दिनों के बाद काम करने के बाद मैंने अरुणाचल प्रदेश का रुख किया, जहां मैं स्वच्छता अभियान को नई ऊड़ान दे रही हूं। पहले मेरे पास कोई रोडमैप नहीं था, लेकिन इसके बाद मैंने इस संबंध में रोडमैप निर्धारित किया। इसके बाद प्रधानमंत्री ने अपने मन की बात कार्यक्रम में हमारे नाम का उल्लेख किया, तो हमें खुशी हुई। अब हमें यह महसूस हो रहा है कि लोग स्वच्छता के प्रति जागरूक हो रहे हैं और कई लोग इससे प्रभावित हो रहे हैं।
मनोज बेंजवाल ने कहा कि मैं उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले का निवासी हूं। वहां एक संगठन है सेवा इंटरनेशनल, जिसमें मैं काम कर रहा हूं। अब मैं देख पा रहा हूं कि लोग स्वच्छता के प्रति जागरूक हो रहे हैं। पहले लोगों को लगता था कि यह सिर्फ पर्यावरणविदों का काम है, लेकिन अब इसे लोग अपना काम समझने लगे हैं, जिससे हमें खुशी मिल रही है। मैंने स्वच्छता से संबंधित 500 से अधिक अभियानों की शुरुआत की है। हम इस संबंध में स्कूली विद्यार्थियों को भी प्रेरित कर रहे हैं और उन्हें स्वच्छता की महत्ता के बारे में बता रहे हैं।
एकीकृत पर्वतीय पहल के सचिव रोशन राय कहते हैं, "हम एक ऐसा मंच हैं जो पहाड़ों से जुड़े मुद्दों को उठाता है, क्योंकि इन मुद्दों के लिए विशिष्ट नीतिगत और व्यवहारिक हस्तक्षेपों की आवश्यकता होती है जो पर्वतीय क्षेत्रों, विशेष रूप से हिमालय की नाजुक लेकिन महत्वपूर्ण सामाजिक-पारिस्थितिकी के प्रति संवेदनशील हों। यही वह काम है जो हम करते आ रहे हैं।"