क्या 'तुम नहीं आए थे...' अली सरदार जाफरी के वो अल्फाज आज भी दिलों में बसते हैं?

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क्या 'तुम नहीं आए थे...' अली सरदार जाफरी के वो अल्फाज आज भी दिलों में बसते हैं?

सारांश

अली सरदार जाफरी की शायरी में गहराई और भावनाओं का अद्भुत समावेश है। उनका यह प्रसिद्ध शेर, 'तुम नहीं आए थे…', आज भी लाखों दिलों में गूंजता है। आइए, उनकी शायरी के जादू और जीवन के अनछुए पहलुओं पर एक नजर डालते हैं।

Key Takeaways

  • अली सरदार जाफरी के शब्दों में गहराई और संवेदनशीलता है।
  • उनकी शायरी में जीवन के विभिन्न पहलुओं का चित्रण मिलता है।
  • जाफरी को कई प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।
  • उनकी रचनाएँ आज भी पाठकों को प्रेरित करती हैं।
  • वे उर्दू साहित्य में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व रहे हैं।

नई दिल्ली, 28 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। 'तुम नहीं आए थे…' ये चार शब्द एक ऐसे सुनहरे पल की याद दिलाते हैं जैसे किसी बंद कमरे में अचानक गूंज उठी कोई पुरानी धुन। ये धीरे-धीरे दिल में उतरते हैं और एक हल्की सी खनक छोड़ जाते हैं। अली सरदार जाफरी की यह नज़्म केवल एक शेर नहीं, बल्कि एक गहन एहसास है। शायद इसी कारण यह आज भी करोड़ों दिलों में गूंजती है। उनकी शायरी महज शब्दों का खेल नहीं, बल्कि जीवन की वास्तविकता का आईना है। यह तस्वीर दर्द, मोहब्बत, इंतज़ार और उम्मीदों की गहरी सांसों से भरी हुई है।

जब 29 नवंबर 1913 को वे इस दुनिया में आए, तब शायद किसी को अंदाजा नहीं था कि यह बच्चा आगे चलकर उर्दू साहित्य में एक ऐसा नाम बनेगा जिसे लोग पीढ़ियों तक याद करेंगे। जाफरी ने केवल शायरी नहीं लिखी, बल्कि उसे पूरी शिद्दत के साथ जीया। उनके शब्दों में हमेशा ज़िंदगी की उलझनें होती थीं, जैसे वे हर इंसान के दर्द को समझते हों और उसे अपनी शायरी में समेट देते हों।

सरदार जाफरी कहा करते थे कि कलमा और तकबीर के बाद जो पहली आवाज उनके कानों में गूंजी, वो मीर अनीस के मरसियों की थी। पंद्रह–सोलह साल की उम्र में उन्होंने खुद मरसिए लिखना शुरू कर दिया।

'तुम नहीं आए थे जब तब भी तो मौजूद थे तुम' उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में से एक है। भले ही यह पढ़ने में साधारण लगती हो, लेकिन असल में यह भावनाओं का एक विशाल सागर है। जाफरी की सबसे बड़ी खूबी यही है कि वे गहरे एहसासों को भी बिलकुल सहज तरीके से व्यक्त कर देते थे। उनकी शायरी में हमेशा विरोधाभास मौजूद होता था। दर्द की लौ और प्यार की खुशबू, ये दोनों बातें आमतौर पर अलग लगती हैं, लेकिन वे इन्हें एक साथ पेश करते थे।

उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर हुई, फिर बलरामपुर के अंग्रेज़ी स्कूल में। उन्हें पढ़ाई में ज्यादा रुचि नहीं थी, इसलिए साल-दर-साल निकलते गए, और अंततः 1933 में हाईस्कूल पास किया। इसके बाद उन्हें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी भेजा गया, जहां उनकी ज़िंदगी ने एक नया मोड़ लिया। 1936 में छात्र आंदोलन में शामिल होने के कारण उन्हें विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिया गया। लेकिन किस्मत देखिए, उसी विश्वविद्यालय ने बाद में उन्हें डी.लिट की मानद उपाधि दी।

इसके बाद उन्होंने दिल्ली के एंग्लो-अरबी कॉलेज से बी.ए. किया और फिर लखनऊ यूनिवर्सिटी पहुंचे, जहां पहले एलएलबी और फिर अंग्रेज़ी में एमए किया। उस समय लखनऊ राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र था और वहां उन्होंने मजाज और सिब्ते हसन के साथ मिलकर 1939 में साहित्यिक पत्रिका 'नया अदब' और अखबार 'पर्चम' की शुरुआत की। यह वह समय था जब जाफरी केवल शायर नहीं रहे, बल्कि एक आंदोलन की आवाज बन गए।

1960 के दशक में उन्होंने पत्रकारिता और साहित्यिक गतिविधियों में और भी सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने 'गुफ्तगू' नाम की प्रगतिशील साहित्य की पत्रिका का संपादन किया, महाराष्ट्र उर्दू अकादमी के निदेशक बने, प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष रहे और कई राष्ट्रीय संस्थाओं से जुड़े रहे।

सिर्फ़ शायरी ही नहीं, उन्होंने इकबाल, कबीर, आज़ादी के आंदोलन और उर्दू के बड़े शायरों पर अनमोल डॉक्यूमेंट्री भी बनाई। मीर और गालिब के दीवानों को जिस खूबसूरती से उन्होंने संपादित किया, उससे नई पीढ़ियों को इन महान शायरों को समझना आसान हुआ।

साहित्य की दुनिया में उन्होंने बहुत नाम कमाया। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरू अवॉर्ड और देश के सबसे बड़े साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। सरकार ने भी उनकी सेवाओं के लिए उन्हें पद्मश्री दिया, लेकिन समय का पहिया चलता रहता है। उम्र बढ़ने के साथ उनकी तबियत ने साथ छोड़ना शुरू कर दिया और 1 अगस्त 2000 को दिल का दौरा पड़ने से अली सरदार जाफरी इस दुनिया से रुखसत हो गए।

Point of View

बल्कि यह समाज के विभिन्न पहलुओं को भी उजागर करती है। यह अनिवार्य है कि हम उनके योगदान को समझें और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करें।
NationPress
28/11/2025

Frequently Asked Questions

अली सरदार जाफरी कौन थे?
अली सरदार जाफरी एक प्रसिद्ध उर्दू शायर और लेखक थे, जिन्होंने अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण साहित्यिक योगदान दिए।
उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ कौन सी हैं?
उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में 'तुम नहीं आए थे…' और अन्य कई नज़्में शामिल हैं।
क्या उन्होंने पुरस्कार जीते हैं?
हाँ, उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्मश्री जैसे कई पुरस्कार मिले हैं।
उनका जन्म कब हुआ था?
उनका जन्म 29 नवंबर 1913 को हुआ था।
उनकी शायरी का मुख्य विषय क्या है?
उनकी शायरी में दर्द, मोहब्बत, इंतज़ार और उम्मीद के भाव प्रमुख हैं।
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