क्या बिहार में चुनाव आयोग का पुनरीक्षण अभियान भाजपा का आखिरी ब्रह्मास्त्र है?

सारांश
Key Takeaways
- भाजपा का पुनरीक्षण अभियान विपक्ष के लिए चुनौती हो सकता है।
- मतदाता सूचियों की पात्रता की पुष्टि का उद्देश्य है।
- सुदामा प्रसाद ने इसे भाजपा का अंतिम प्रयास बताया है।
- राजनीतिक दलों का सहयोग इस अभियान में महत्वपूर्ण है।
- स्वयंसेवक मतदाताओं की मदद करेंगे।
पटना, 29 जून (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय निर्वाचन आयोग ने बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान की शुरुआत की है, जिस पर कई विपक्षी दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। इस संदर्भ में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) के सांसद सुदामा प्रसाद ने रविवार को भाजपा पर जोरदार हमला किया। उन्होंने इसे भाजपा का अंतिम ब्रह्मास्त्र करार दिया।
सुदामा प्रसाद ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत में कहा, "यह भाजपा का अंतिम ब्रह्मास्त्र है। उनका शासन हाथ से निकलता जा रहा है। जनता और मतदाता उनके खिलाफ हो चुके हैं। सरकार ने लोगों को रोजगार नहीं दिया और न ही देश की सीमाओं की सुरक्षा की। एनडीए सरकार बिहार से जाने वाली है और इस हताशा में ऐसा कदम उठाया गया है। जो लोग वोटबंदी की कोशिश कर रहे हैं, उनके खिलाफ जनता सड़कों पर उतरने के लिए तैयार है।"
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के संविधान पर हाल में दिए गए बयान को गलत बताते हुए सुदामा प्रसाद ने कहा, "वह ऐसे संवैधानिक पद पर बैठकर गैर संवैधानिक बातें कर रहे हैं। उन्हें पहले इस्तीफा देना चाहिए।"
जानकारी के अनुसार, बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) आरंभ किया है, जिसका उद्देश्य राज्य में प्रत्येक मतदाता की पात्रता की पुष्टि करना है। विपक्षी नेता इस मुद्दे पर सरकार और चुनाव आयोग पर सवाल उठा रहे हैं।
यह अभियान राजनीतिक दलों और जिला प्रशासन के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसके लिए चुनाव आयोग ने बूथ स्तर पर काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या बढ़ाई है। एसआईआर के तहत, ईसीआई ने पहले से मौजूद 77,895 बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) के अलावा 20,603 और बीएलओ तैनात किए हैं।
इसके साथ ही, एक लाख से ज्यादा स्वयंसेवक भी नियुक्त किए गए हैं, जो बुजुर्गों, दिव्यांगों, बीमार, गरीब और कमजोर वर्ग के मतदाताओं की मदद करेंगे।