क्या बिहार चुनाव 2025 में घोसी सीट पर 38 साल बाद एक ही परिवार का राज खत्म होगा?

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क्या बिहार चुनाव 2025 में घोसी सीट पर 38 साल बाद एक ही परिवार का राज खत्म होगा?

सारांश

बिहार चुनाव 2025 में घोसी विधानसभा सीट पर एक ही परिवार का 38 साल का राज खत्म होने की संभावना है। वाम दलों और जदयू के बीच हो रही टक्कर दर्शाती है कि इस बार चुनावी परिदृश्य कितना बदल सकता है। क्या जनता अपने अधिकारों के लिए जागरूक होगी?

Key Takeaways

  • 38 साल तक एक ही परिवार का राज
  • वाम दलों का उदय
  • जनता का जागरूक होना
  • जातीय समीकरण का महत्व
  • घोसी का विकास और भविष्य

पटना, 29 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार की राजनीतिक भूमि सदैव से उपजाऊ रही है। जहानाबाद जिले की घोसी विधानसभा सीट इसी राजनीति का एक प्रमुख मंच है। यह क्षेत्र भौगोलिक और सामाजिक दृष्टि से भले ही पूरी तरह से ग्रामीण हो, लेकिन यहां की चुनावी लड़ाइयां अक्सर राज्य की सुर्खियों में रही हैं।

घोसी विधानसभा क्षेत्र जहानाबाद लोकसभा सीट के अंतर्गत आता है। घोसी का इतिहास 1977 से 2015 तक एक परिवार के इर्द-गिर्द घूमता रहा है। यह कहानी शुरू होती है जगदीश शर्मा से, जिन्होंने घोसी की राजनीति पर लगभग चार दशक तक अपना एकाधिकार बनाए रखा। 1977 से 2009 तक, शर्मा लगातार आठ बार विधायक चुने गए।

यह अपने आप में एक अनोखा रिकॉर्ड है कि इस दौरान उन्होंने कई पार्टियों की सीढ़ियां चढ़ीं। जनता पार्टी, भाजपा, कांग्रेस, और जदयू के साथ-साथ दो बार निर्दलीय भी चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे।

जब जगदीश शर्मा 2009 में जहानाबाद से लोकसभा सांसद चुने गए, तो यह सीट उनके परिवार की विरासत बन गई। विधानसभा उपचुनाव में उनकी पत्नी शांति शर्मा निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर विजयी हुईं और 2010 के अगले विधानसभा चुनाव में उनके बेटे राहुल शर्मा ने जदयू के टिकट पर जीत दर्ज की।

घोसी विकास खंड पूरी तरह से ग्रामीण है और 2011 की जनगणना के अनुसार, इसकी कुल आबादी 1,08,130 है। जातीय समीकरण की बात करें, तो यहां का चुनावी गणित काफी उलझा हुआ है। यादव, भूमिहार, रविदास और पासवान समुदाय के मतदाता चुनाव में अहम भूमिका निभाते हैं।

अनुसूचित जातियों के वोटरों की संख्या लगभग 19.93 प्रतिशत है, जो किसी भी चुनाव का रुख पलटने की क्षमता रखते हैं।

घोसी का राजनीतिक इतिहास सिर्फ एक परिवार तक सीमित नहीं है। यहां वाम दलों, खासकर भारतीय कम्‍युनिस्‍ट पार्टी (सीपीआई) और कम्‍युनिस्‍ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्‍सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन का भी प्रभाव रहा है। सीपीआई ने दो बार जीत दर्ज की थी और माले भी एक बार जीत चुकी थी।

2020 के विधानसभा चुनाव में घोसी में एक बड़ा उलटफेर हुआ, जिसने लगभग चार दशकों के वर्चस्व को तोड़ दिया। इस चुनाव में महागठबंधन के तहत सीपीआई-माले के उम्मीदवार राम बली सिंह यादव ने जगदीश शर्मा के बेटे जदयू के राहुल कुमार को भारी अंतर से हराया। इस बार भी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन ने राम बली सिंह यादव को अपना उम्मीदवार बनाया है, जिसका मुकाबला जदयू प्रत्याशी ऋतुराज कुमार से होगा।

Point of View

लेकिन हाल के चुनावों ने यह संकेत दिया है कि जनता अब जागरूक हो रही है। वाम दलों का उभार और जदयू का सामना, यह सब दर्शाता है कि बिहार की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू हो सकता है।
NationPress
29/10/2025

Frequently Asked Questions

घोसी विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास क्या है?
घोसी विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास 1977 से 2015 तक एक ही परिवार के चार दशकों के राज से जुड़ा है।
क्या इस बार चुनाव में वाम दलों की स्थिति मजबूत है?
हां, पिछले चुनाव में वाम दलों ने महत्वपूर्ण जीत दर्ज की है, जिससे उनकी स्थिति मजबूत हो गई है।
घोसी क्षेत्र की जनसंख्या क्या है?
घोसी क्षेत्र की जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 1,08,130 है।
इस क्षेत्र के प्रमुख जातीय समूह कौन से हैं?
इस क्षेत्र में यादव, भूमिहार, रविदास और पासवान समुदाय के लोग प्रमुख हैं।
घोसी विधानसभा की सीट किस लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है?
घोसी विधानसभा क्षेत्र जहानाबाद लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है।