क्या जदयू के गढ़ निर्मली में सेंध लगा पाएगा विपक्ष?

सारांश
Key Takeaways
- निर्मली विधानसभा क्षेत्र की सामरिक स्थिति है।
- जदयू का यहाँ पिछले १५ वर्षों से दबदबा।
- बाढ़ और भूमि विवाद यहाँ की प्रमुख समस्याएँ।
- २०२० में ६३.२० प्रतिशत मतदान।
- क्षेत्र की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है।
पटना, २ अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार के सुपौल जिले की निर्मली विधानसभा सीट पिछले १५ वर्षों से जदयू का एक मजबूत गढ़ रही है। २०१० के विधानसभा चुनाव से यह सीट जदयू के पास है। इस बार स्थानीय मुद्दों और राजनीतिक महत्व के कारण इस क्षेत्र पर सभी राजनीतिक दलों की नजरें हैं।
निर्मली विधानसभा क्षेत्र १९५१ में अस्तित्व में आया और १९५२ में पहला चुनाव कांग्रेस ने जीता। इसके बाद यह सीट २००८ में परिसीमन के बाद पुनः अस्तित्व में आई। २०१० में हुए पहले चुनाव में जदयू के अनिरुद्ध प्रसाद यादव ने जीत हासिल की, जो २०१५ और २०२० में भी बरकरार रही। जदयू ने तीनों विधानसभा चुनावों में जीत का परचम लहराया।
इस जीत का फायदा जदयू को लोकसभा चुनाव २०२४ में भी मिला, जब दिलेश्वर कामैत ने निर्मली विधानसभा से शानदार बढ़त बनाई।
निर्मली विधानसभा क्षेत्र सुपौल लोकसभा के अंतर्गत आता है और यह राघोपुर और सरायगढ़ भपटियाही प्रखंडों से घिरा हुआ है, जो नेपाल सीमा के करीब होने के कारण सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। नेपाल का महत्वपूर्ण शहर विराटनगर यहाँ से मात्र ५० किलोमीटर उत्तर में है।
हालांकि, यहाँ की सबसे बड़ी समस्या बार-बार आने वाली बाढ़ है, जिससे यह क्षेत्र प्रभावित होता है। १९३४ का भूकंप और २००८ के तटबंध टूटने की घटनाओं ने भारी नुकसान पहुँचाया। बाढ़ और भूमि विवाद आज भी प्रमुख समस्याएँ हैं।
इसके अलावा, निर्मली में बुनियादी सुविधाओं की कमी है। सड़कों की स्थिति खराब है और शिक्षा तथा स्वास्थ्य संस्थानों में संसाधनों और कर्मचारियों की कमी दिखती है। कृषि यहाँ की अर्थव्यवस्था का आधार है, जहाँ धान, मक्का और दालें प्रमुख फसलें हैं।
चुनाव आयोग के अनुसार, निर्मली विधानसभा क्षेत्र में कुल २,९६,९८९ रजिस्टर्ड मतदाता थे, जिनमें १७.३० प्रतिशत मुस्लिम और १३.८८ प्रतिशत अनुसूचित जाति के मतदाता शामिल हैं। यादव समुदाय यहाँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। २०२० के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर ६३.२० प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया था।